कभी भी अपने रूप का अभिमान मत करना विमर्श सागर महाराज

धर्म

कभी भी अपने रूप का अभिमान मत करना विमर्श सागर महाराज
जतारा
आचार्य श्री 108 विमर्श सागर महाराज का वर्षा योग उनकी जन्मस्थली जतारा में हो रहा है उन्होंने रूप का अभिमान ना करने की बात सभी से कहीं।

 

 

महाराज श्री ने कहा कि संसार रूपी जगत में कोई भी व्यक्ति अपना वास्तविक स्वरूप दिखाना नहीं चाहता और अपने चेहरे की वास्तविक स्वरूप को छुपाता है एवं अनेक प्रकार के सौंदर्य प्रसाधनों का उपयोग करता है। लेकिन यहां ध्यान रखने योग्य बात है कि यह सौंदर्य प्रसाधन चेहरे की सुंदरता को कुछ ही समय टिकने देते हैं यह ज्यादा समय तक टिकती नहीं है।

 

 

 

महाराज श्री ने विशेष जोर देते हुए कहा कि जैसे ही चेहरे पर पसीना आने लगता है  चेहरे की सुंदरता धूल जाती है। दिगंबर जैन संत की व्याख्या करते हुए महाराज श्री ने कहा कि दिगंबर जैन संत अपनी देह पर कोई भी वस्त्र अलंकार धारण नहीं करते हैं। इसके विपरीत जैन संत संसार शरीर भोगों से विरक्ति को धारण करते हुए अपने भीतर आत्मा के गुणों को धारण करते हैं। उन्होंने यथार्थ सत्य को बताते हुए कहा कि व्यक्ति बालपन में यथा युवावस्था में सुंदर दिखता है

 

लेकिन संसार की नियति निर्धारित है कि जो भी व्यक्ति है उसकी युवा व्यवस्था प्रौढ़ावस्था, बुढ़ापा अवश्य आता है। और उसका मरण काल आना भी निश्चित है। यह रूप की सुंदरता स्थिर नहीं है। यह तो धूप की तरह होती है, कब आए और कब विदा हो जाए, इसका कोई भरोसा नहीं होता है। कभी भी अपने रूप पर अभिमान मत करना।

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