भावों की शुद्धता आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है आर्यिका 105 पवित्र मति माताजी

धर्म

भावों की शुद्धता आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है आर्यिका 105 पवित्र मति माताजी
हाटपिपलियां
धर्म परायण नगरी संतों की जन्मभूमि हाटपिपलिया में रविवार की बेला में पूज्य आर्यिका 105 पवित्र मति माताजी ने भावों की शुद्धता पर जोर दिया।

पूज्य माताजी ने रविवार की बेला में कहा की पाप कर्म से जब हम सर्वथा में मुक्त हो जाते हैं तो अपने आप ही पुण्य कर्म संचय की संभावनाएं बढ़ने लगती हैं। हमारे जीवन में भावों की शुद्धता ही आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है।

 

 

 

उन्होंने ध्यान आकृष्ट किया और कहा कि हमारे जीवन में एक समय में किया गया दुर विचार जन्म जन्मांतर तक नकारात्मक परिणामों को जन्म दे देता है। जैन दर्शन के अंदर मन वचन काय शुद्धि को आधार रखकर आहार दान की प्रक्रिया का पालन होता है। शुभ और अशुभ को कर्म की स्वाभाविक प्रक्रिया बताते हुए कहां की सांसारिक जीवन में अच्छे एवं बुरे कर्मों का उदय अनवरत रूप से हुआ करता है। माताजी ने कर्मों की निर्जरा करने की ओर ध्यान केंद्रित करने की और सभी को प्रेरित किया।

भौतिक रूप से हमारे द्वारा बुरा नहीं होता है लेकिन मनोभाव के कारण हम उसे विकृत बना लेते हैं। इसी कारण जाने अनजाने में हम पाप बंध के भागीदार हो जाते हैं।

संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी

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