सम्यक ज्ञानशिविर में बुधवार को होंगी परीक्षाएं इच्छा से बड़ी महत्वाकांक्षा होती है मुनि श्री सुधा सागर महाराज
दमोह
दमोह के इतिहास में प्रथम बार निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज निर्यापक मुनि श्री प्रसाद सागर जी महाराज निर्यापक मुनि श्री वीर सागर जी महाराज के ससंघ मंगल सानिध्य में दिनांक 22 मई से 28 मई तक आयोजित श्रमण संस्कृति संस्कार शिक्षण शिविर के अंतिम दिवस अध्यापन समाप्त होने के बाद 29 मई को प्रातः काल विभिन्न शास्त्रों का अध्ययन कर रहे शिक्षार्थियों की परीक्षा ली जावेगी।
शिविर प्रभारी डॉक्टर प्रदीप आचार्य ने बताया कि यह परीक्षा ऑनलाइन की जावेगी परीक्षा हेतु 50 मिनट का समय निर्धारित किया गया है परीक्षा हेतु प्रश्न पत्र विद्वानों के द्वारा तैयार किए जाएंगे परीक्षा में सर्वाधिक अंक अर्जित करने वाले प्रथम द्वितीय तृतीय प्रतिभागियों को समिति के द्वारा पुरस्कृत किया जाएगा। सभी परीक्षाएं कक्षाओं के निर्धारित समय पर ही आयोजित की जाएगी।




मीडिया प्रभारी सुनील वेजीटेरियन ने बताया कि दमोह के इतिहास में पहली बार इतनी बड़ी संख्या में शिक्षार्थी एक साथ परीक्षा देंगे समिति के सदस्यों के द्वारा इस हेतु तैयारी की गई हैं।
इसके पूर्व अंतिम दिवस भक्तांमर की क्लास में निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज ने कहा कि इच्छा से बड़ी महत्वाकांक्षा होती है महत्वाकांक्षा वह होती है जिसे हम पा नहीं सकते किंतु पाने का प्रयास करते है जो पूर्ण हो जाती है वह इच्छा होती है संसारी प्राणी इच्छा को मार लेता है किंतु महत्वाकांक्षा को नहीं मार पाता। व्रती व्यक्ति महत्वाकांक्षा को मारता है चिड़िया जैसे उड़ने की मनुष्य की महत्वाकांक्षा होती है। उड़ नहीं सकते तो गिरते हैं उठ नहीं सकता तो झुकूंगा इससे एक अलौकिक शक्ति जाग जाती है। जो तुम्हें बचा लेती है बड़ों को नमस्कार करते हो तो वह उठा लेता है तुमने बड़े को नमस्कार किया तुम झुके नहीं तुमने बड़े को झुका लिया गुरु भी नमस्कार करने वाले को उठा लेते हैं अपने आशीर्वाद से भक्त को उठा देते जैसे ही तुम झुके तो इतना बड़ा पुण्य बाध होता है कि जिस महाशक्ति को कोई नहीं झुका पाया वह तुम्हें उठाने के लिए झुक जाता है।
महाराज श्री ने सुदामा का उदाहरण देते हुए कहा कि सुदामा झुकने के लिए पहुंचे थे अपने मित्र श्री कृष्ण के चरणों में किंतु उन्होंने सुदामा को पहले ही उठा लिया जिसके सामने तीन खंड के 32000 राजा झुकते थे वह आज सुदामा को उठाने के लिए झुक गया गुरु के समक्ष सदैव झुक कर विनम्र होकर ज्ञान प्राप्त करना कभी गुरु से हंस बनकर ज्ञान प्राप्त नहीं करना मिट् जाओगे मां से कभी दूध हंस बनकर नहीं पीना वरना मर जाओगे दूध में पानी मिलाती है क्योंकि मां जानती है बच्चे को बिना पानी का दूध नहीं बचेगा किंतु हंस पानी पानी को अलग कर देता है।
इसके पूर्व निर्यापक मुनि श्री वीर सागर जी महाराज ने कहा कि साधारण व्यक्ति बाहरी निमितों से बहुत जल्दी प्रभावित हो जाता है और अशांत हो जाता है अपने जीवन को आनंदमय कैसे बनाएं यही जनना जीवन की सबसे बड़ी कला है इसके लिए सबसे पहले हमें अपने आप को पहचाने की हम कौन हैं हम क्या पाना चाहते हैं दुनिया में कुछ भी संभव नहीं है सब कुछ संभव है बस इसे पाने का पुरुषार्थ सही दिशा में होना चाहिए।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी 9929747312

