मोह में फसी आत्मा को जगाने की आवश्यकता है स्वास्तिभूषण माताजी
केशोरायपाटन
परम पूजनीय गणिनी आर्यिका 105 स्वस्तिभूषण माताजी ने कहा की मनुष्य के कर्म नही, आत्मा बलवान होती है। कर्म में भक्ति, सत्संग, ध्यान, संत समागम को जोड़ दिया जाए तो वह अच्छे हो जाते हैं।
उन्होंने कहा कि जहर को भी दवा के रूप में काम लिया जाए तो वह जीवन देने का कार्य करता है। जहर ही कई बार जहर को काट देता है। इसीलिए मोह में फसी आत्मा को जगाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि ग्रहस्थ में कही कार्य नहीं चाहते हुए भी करने पड़ जाते हैं। कर्म हमारी आत्मा को प्रभावित कर रहा है। या आत्मा कर्म को प्रभावित करती है। यह आप पर निर्भर है।
उन्होंने कहा कि मनुष्य का एक-एक क्षण कीमती है। इसे व्यर्थ बातों में नहीं गवाना चाहिए। जो सांस ईश्वर ने दी है ना उसकी कीमत समझने की जरूरत है। जब अंतिम सांस चल रही हो उस समय कहा जाए की कुछ सांसे और मिल जाए। चाहे कीमत कुछ भी हो, लेकिन सांसे नही मिल पाती है।





पूज्य माताजी ने इस बात पर भी। जोर दिया जरूरी नहीं है कि सभी की बातें सुनी जाए, हमें वही सुनना चाहिए जो हमारे लिए उपयोगी हो। लेकिन आजकल इसका उल्टा हो रहा है। व्यर्थ की बातें सुनकर हम उसमें उलझे रहते हैं। जबकि उससे हमारा कुछ भी भला नहीं होने वाला। अधिकांश चीजे हवा से चल रही है। उनको हवा में ही रहने देना चाहिए , अपने पुरुषार्थ को जगाने की आवश्यकता है। जिसने पुरुषार्थ को जगा लिया वह अपने जीवन में कई परेशानियों से बच सकता है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी 9929747312

