72 वर्षीय 105 आर्यिका श्री वत्सलमति जी आचार्य संघ सानिध्य में अतिशय क्षेत्र टोंक में पंचतत्व में लीन। संघ चेत्यालय के श्री चंद्र प्रभु से पुरानी टोंक के श्री चंद्र प्रभु भगवान तक का लौकिक यात्रा पूर्ण।
टोंक राजस्थान
तेरी छत्रछाया भगवन मेरे सिर पर हो ,मेरा अंतिम मरण समाधि तेरे दर पर हो बिरले आत्मा जो धर्मात्मा बन कर वैराग्य धारण कर दीक्षा संयम के मंदिर पर संलेखना का कलशारोहण कर परमात्मा बनने की राह पर अग्रसर होते हैं। समाधिस्थ मुनि श्री निर्मल सागर जी की जन्म भूमि अतिशय क्षेत्र टोंक में आर्यिका श्री वत्सल मति जी का 6 नवंबर शाम 6.15 को आचार्य श्री केश्री मुख से अरिहंत सिद्ध सुनते समाधि मरण होने से विमानयात्रा चकडोला 7 नवंबर 2025 को प्रातः 8 बजे निकाला गया। दिन रात मेरे स्वामी, में भावना यह भावु ।देहांत के समय मे तुमको न भूल जावू।मरण समय गुरु पाद मूल हो संत समूह रहे ,पंडित पंडित मरण हो ऐसा अवसर दो।इन सारगर्भित भावनाओ को बिरले ही भव्य जीव अपने जीवन मे चरितार्थ करते है ।पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्धमान सागर से 18 अगस्त वर्ष 1997 में दीक्षित सलूंबर धरियावद निवासी समाधिस्थ आर्यिका श्री वत्सल मति माताजी जी का डोला विमान यात्रा 7 नवंबर को निकाली गई। समाधिस्थ माताजी के डोले के आगे कमंडल लेकर भूमि शुद्धि का सौभाग्य परिजनों को प्राप्त हुआ। कंधे लगाने का सौभाग्य परिजनों के साथ समाज को प्राप्त हुआ वैराग्य दर्शन समाधिस्थल परिसर में मंत्रोचार से स्थल शुद्धि की गई। समाधिस्थ आर्यिका श्री वत्सलमति जी की पूजन,शांतिधारा , पंचामृत अभिषेक उल्टेक्रम से गृहस्थ अवस्था के परिवार द्वारा किया गया। इस अवसर पर आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने बताया कि उत्कृष्ट समाधि होने पर समाधिस्थ जीव अगले दो भव जन्म से 8 भव में निश्चित मोक्ष जाते हैं मरण सुमरण हो, समाधि मरण हो ऐसा प्रयास करना चाहिए। आचार्य श्री ने बताया कि रत्नत्रय के तीन प्रमुख सम्यक दर्शन ,सम्यक ज्ञान, सम्यक चारित्र से मोक्ष मार्ग प्राप्त होकर जन्म जरा मृत्यु का विनाश होता है । देव शास्त्र गुरु चरण में ही रत्नत्रय धर्म का मार्ग मिलता है क्योंकि मोक्ष मार्ग ही अविनाशी फल है लौकिक फल तो नश्वर होता है इसलिए आपको पुण्य का बंध करना चाहिए पाप के बंध से कर्मों का आश्रव होता है जैसे कार्य करेंगे वैसे ही कर्मों का बंघ होगा मन को देव शास्त्र गुरु की भक्ति में लगाने से शाश्वत सुख की संपदा प्राप्त होगी पांच इंद्रीय विषय भोगों से नर्क और तिर्यच गति का दुख प्राप्त होगा। यह मंगल देशना आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज ने टोंक नगर मे आर्यिका श्री वत्सल मति जी की समाधि पश्चात भक्तों की सभा में प्रकट की। आर्यिका श्री महायश मति माताजी अनुसार व शब्द वीतरागता पर विजय, वैराग्य का प्रतीक है विमला दीदी ,से आर्यिका श्री वत्सल मति में वात्सल्य वारिधी आचार्य श्री वर्धमान सागर जी यह व शब्द का अदभुत अनुठा संयोग है । क्षपक साधु की उत्कृष्ट समाधि होने पर अगले 2 भव जन्म से 8 भव जन्मों में सिद्ध होते हैं सलूंबर धरियावद की विमला दीदी की 18 अगस्त वर्ष 1997 पंच कल्याणक में भिंडर में आर्यिका दीक्षा आचार्य श्री वर्धमान सागर जी के सिद्धहस्त करकमलों से हुई आपका नाम आर्यिका श्री वत्सल मति जी हुआ । ऐसा लगता हैं कि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी द्वारा घोषित अतिशय क्षेत्र अब निर्वाण सिद्ध भूमि हो गया हैं जबसे आचार्य श्री का चातुर्मास 55 वर्षों के बाद हुआ हैं। समाज के फूलचंद जी , धर्म चंद जी जी, कमल सराफ लोकेश गजराज प्रदीप4 एवं अमित छामुनिया अनुसार सकल जैन समाज , पंच कल्याणक समिति एवं वर्षायोग समिति के तत्वाधान में आयोजित कार्यक्रम में टोंक नगर के अतिरिक्त निकट के अन्य नगरों से भक्त अंतिम दर्शन हेतु शामिल हुए।आचार्य श्री वर्धमान सागर जी संघ की मुनि श्री विशाल सागर जी मुनि श्री चिन्मय सागर जी ,क्षुल्लक श्री शील सागर जी,आर्यिका श्री वत्सल मति सहित चौथी समाधि हुई हैं।
राजेश पंचोलिया इंदौरवात्सल्य वारिघि भक्त परिवार से प्राप्त जानकारी संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी 9929747312

