भारत महाशक्ति बन जाता यदि वह हिंदी का उपयोग करता भावसागर महाराज
घाटोल
वासूपूज्य दिगंबर जैन मंदिर में आचार्य विद्यासागर महाराज के शिष्य मुनि भाव सागर महाराज ने कहा कि यदि आप हिंदी भाषी हैं और आधुनिक सभ्यता के शौकीन होकर बिना जरूरत, अंग्रेजी बोलने की लत पाल चुके हैं, तो जरा सावधान हो जाइए। देश के वैज्ञानिकों ने कहा है कि अंग्रेजी की तुलना में हिंदी भाषा बोलने से मस्तिष्क अधिक चुस्त-दुरुस्त होता है। राष्ट्रीय मस्तिष्क अनुसंधान केन्द्र के डॉ. द्वारा कराये गए एक परीक्षण की रिपोर्ट के अनुसार-“अंग्रेजी बोलते समय दिमाग का सिर्फ बायाँ ही हिस्सा सक्रिय रहता है, जब कि हिंदी बोलते समय मस्तिष्क का दायाँ और बायाँ दोनों हिस्से सक्रिय हो जाते हैं, जिस से दिमाग स्वस्थ व तरोताजा रहता है।
महाराज श्री ने कहा की हमारा मुँह भी कम्प्यूटर के की-बोर्ड की तरह ही है। जब हम अपने मुख से संस्कृत और हिंदी के शब्दों का उच्चारण करते हैं, तो पूरे 52 अक्षरों के निश्चित स्थान सक्रिय होते हैं, जिसका सम्बन्ध मस्तिष्क से होता है। जब कि अँग्रेजी बोलने से मात्र 19 अक्षरों के निश्चित स्थान ही सक्रिय होते है, जिससे मस्तिष्क का विकास अवरुद्ध हो जाता है। हिंदी भाषा का प्रयोग मस्तिष्क की प्रत्येक कोशिका को सक्रिय रखता है, जबकि अँग्रेजी बोलने वालों की आधे से अधिक कोशिकाएं रहती हैं। दुनिया के सभी प्रगतिशील तथा विकसित देश जैसे-रूस, जर्मनी, फ्रांस, जापान, चीन, इत्यादि प्राथमिक शिक्षा तो अपनी मातृभाषा में ही देते हैं। भाषा का माध्यम अलग वस्तु है और भाषा का ज्ञान अलग वस्तु है।

रामगंजमंडी।
दिनांक 14 एवं 15 सितंबर को रामगंज मंडी की होटल महाराजा पैलेस में सुबह 11:00 बजे से रात्रि 8:00 बजे तक मुंबई एवं कोलकाता की एनटिक ज्वेलरी एवं सर्टिफाइड डायमंड ज्वेलरी की एग्जीबिशन एवं सेल कोटा की मशहूर ज्वेलर्स पारस ज्वैलर्स के द्वारा लगाई जा रही है। अधिक जानकारी के लिए निम्न नंबरों पर संपर्क कर सकते हैं। 9414180123,9414126451
महाराज श्री ने कहा की मैं अँग्रेजी का विरोध नहीं कर रहा हूँ। आप उसे भाषा के रूप में पढ़िए, माध्यम के रूप में नहीं। मातृभाषा न केवल बच्चों के बौद्धिक विकास में सहायक होती है, अपितु यह उन को अपनी सांस्कृतिक विरासत से परिचित कराकर उन के अन्दर सांस्कृतिक गौरव और आत्म-विश्वास भी जागृत करती है। किसी भी व्यक्ति की भावनाएँ एवं उद्गार अपनी मातृभाषा में ही अच्छी प्रकार से व्यक्त होते हैं। आधुनिक भारत के संबंध में तो मातृभाषा का महत्त्व और भी-अधिक है।
हिंदी-भाषी लोग अन्य भारतीय भाषाओं का सम्मान करें, तो हिंदी की स्वीकृति बढ़ेगी यह मंत्र है, यह सूत्र है हिंदी को सर्व-स्वीकार्य बनाने के लिए हमने ही इस मंत्र को भुला दिया | यदि हिंदी भाषी छात्र अन्य भारतीय भाषाएँ सीखते और छात्रों पर सिर्फ अँग्रेजी लादने की बजाय अन्य विदेशी भाषाएँ सिखाई जातीं, तो अभी तक भारत महाशक्ति बन जाता । नीति के कारण देश का बहुत नुकसान हो रहा है । अँग्रेजी सीखिए, पर अंग्रेजियत की नकलकर अँग्रेजी संस्कृति के गुलाम मत बनिए। अँग्रेजी और अँग्रेजियत में अंतर है। उस अंतर को समझिए, उसे बनाये रखिए तथा अपने ऊपर अँग्रेजियत को हावी मत होने दीजिए एवं अपने भीतर पीढ़ियों से रहने वाली मातृभाषा की प्रकृति को मिटने मत दीजिए। वह अंतर मिटेगा, तो आप की भाषाएँ मिट जाएँगी, संस्कृति मिट जाएगी, ज्ञान मिट जाएगा, परम्परा मिट जाएगी, इतिहास मिट जाएगा और आपकी पहचान भी पहले सिमटेगी और फिर हमेशा के लिए मिट जाएगी। आने वाली पीढ़ियाँ हमेशा के लिए मानसिक गुलामी में फँस जाएँगी। इस पर ध्यान दीजिए। ज्ञानी बनिए, बुद्धिमान बनिए, गुलाम मत बनिए। स्वाधीन बनकर रहिएअँग्रेजी सीखिए, पर अँग्रेजियत से दूर रहिए।
महाराज श्री ने हिंदी भाषा का इतिहास बताते हुए कहा कि हिन्दी भाषा का इतिहास लगभग एक हज़ार वर्ष पुराना है जन्म लेने के बाद बालक जो प्रथम भाषा सीखता है उसे हम मातृ भाषा कहते है मातृ भाषा में पढ़ने से छत्रों की योग्यता 5 गुना बढ़ जाती है “हम ने कई बार देखा है कि यदि शोध मातृभाषा में किये जाते हैं, तो उनकी गुणवत्ता बेहतर होती है, जब कि अँग्रेजी में यह औसत ही रहती है। यही कारण है कि रूस, जापान, फ्रांस आदि में शोध अपनी भाषाओं में ही होते हैं।

समाज में हिंदी सरकारी विद्यालयों की गिरती दीवारों के बीच सिमटती जा रही है और हम अपनी आने वाली पीढ़ी को इस से जितना हो सके, उतनी दूरी बना के रखना चाहते हैं। अगर कोई हिंदी में लिखना या बोलना चाहता है, तो उस को मुँहतोड़ जवाब देने की पूरी कोशिश की जाती हैं।
क्यों हम अपनी पहचान, अपनी सभ्यता, अपनी परम्परा को भुलाने के लिए इतने तत्पर दिख रहे हैं? जब हम बाहर के लोगों से जैसे ही बात करते थे और उनको पता चलता था कि हम भारत से हैं, वो हिंदी में बात करते थे, गर्व होता था कि हिंदी भारत की पहचान है, तब-फिर हम इस पहचान के निशान को मिटाने के लिए इस कदर दुराग्रही क्यों होते जा रहे हैं ?
वे हिंदी की लोकप्रियता इतनी अधिक है कि दूसरी भाषा के मुकाबले हिंदी 14% की वृद्धि दर से सब से आगे बढ़ने वाली भाषा है, । हिंदी भाषा की इतनी अधिक माँग है कि अब हर जगह भाषा इतनी अधिक प्रसिद्ध है कि कोई भी हर रूप में सेवा प्रदान करता है। हिंदी का महत्त्व आज इस कदर बढ़ गया है कि इस ने आधुनिक तकनीकी को भी अपना लिया है। । हम स्वभाषा के माध्यम से जागृत हो जाए तो हिंदी से जुड़कर हम भारत ही नहीं, कमोबेश सारे विश्व से जुड़ सकते हैं।
धर्मसभा में मुनि श्री धर्म सागर जी महाराज ने आत्म विकास के बारे में बताया मुनिश्री अनंत सागर जी महाराज ने जीवन को उन्नत बनाने के सूत्र बताएं। इस अवसर पर मुनिश्री
मुनि विमल सागर महाराज ने कहा कि संस्कृत का उच्चारण करने से योगा हो जाता है अंग्रेजी पढ़ते समय दिमाग का आधा हिस्सा कार्य करता है हिंदी बोलते समय मस्तिष्क अधिक चुस्त दुरुस्त होता है भामाशाह जैसे व्यक्ति प्रसिद्धि को प्राप्त हुए दान के कारण एक व्यक्ति ने कहा था कि जबसे मेने दान दिया है तब से मेरे जीवन में परिवर्तन आया। कमेटी ने जानकारी देते हुए बताया कि साबला जैन समाज महिला मंडल ने श्रीफल समर्पित कर नगर में आने का निवेदन किया।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी

