स्वयं के परमात्मा को उजागर करने का पुरुषार्थ करें और आत्मीय सुख प्राप्त करें मुनि श्री सुदत्त सागर महाराज

धर्म

स्वयं के परमात्मा को उजागर करने का पुरुषार्थ करें और आत्मीय सुख प्राप्त करें मुनि श्री सुदत्त सागर महाराज
ईसागढ़
पूज्य मुनि श्री 108 सुदत्त सागर महाराज ने अपनी अमृतवाणी में मनुष्य जीवन को दुर्लभ जीवन बताया उन्होंने एक उदाहरण के माध्यम से कहा कि समुद्र के तट पर बैठा हुआ एक व्यक्ति प्रमादवश किसी बहुमूल्य रत्न को समुद्र में गिरा देता है तो क्या उस रत्न को पुनः प्राप्त करने की कल्पना की जा सकती है। नहीं ना इस प्रकार मनुष्य पर्याय रूपी चिंतामणि रत्न प्राप्त होने के बाद यूं ही लक्ष्यहीन हो तो वह गवा देने के समान है।

 

 

 

 

पंडित दौलतराम जी के छहढाला ग्रंथ की व्याख्या करते हुए कहा की मनुष्य को इस दुर्लभ पर्याय को परोपकार, धर्म,दया,दान करके इस दुर्लभ पर्याय का सदुपयोग करना चाहिए। मनुष्य भव, धर्म, श्रवण, श्रद्धा और संयम यह रत्न जिसे भी पुण्य योग से प्राप्त होते है, उसका भव भ्रमण छुटने में समय नहीं लगता।

एग्जीबिशन और सेल 14 एवं 15 सितंबर 2023 को रामगंजमंडी महाराजा पैलेस में।
रामगंजमंडी।
दिनांक 14 एवं 15 सितंबर को रामगंज मंडी की होटल महाराजा पैलेस में सुबह 11:00 बजे से रात्रि 8:00 बजे तक मुंबई एवं कोलकाता की एनटिक ज्वेलरी एवं सर्टिफाइड डायमंड ज्वेलरी की एग्जीबिशन एवं सेल कोटा की मशहूर ज्वेलर्स पारस ज्वैलर्स के द्वारा लगाई जा रही है। अधिक जानकारी के लिए निम्न नंबरों पर संपर्क कर सकते हैं। 9414180123,9414126451

आज के वर्तमान परिपेक्ष में प्रकाश डालते हुए महाराज श्री ने कहा कि आज कितने लोग होंगे जो धर्म श्रवण में रुचि रखते हैं, कितने हैं जो सच्ची श्रद्धा के धनी है, कदाचित श्रद्धा यदि हो भी जाए पर संयम ग्रहण करके जीवन को सफल बनाने वालों की गिनती तो केवल उंगलियों पर की जा सकती है। उन्होंने मार्मिक शब्दों के साथ कहा कि आज का व्यक्ति गृहस्थ जीवन में संयम के पथ पर चलने के लिए तो काफी विचार करता है कहीं पद से च्युत हो गया तो फिर क्या होगा परंतु संसार के पथ पर चलते हुए कभी विचार नहीं करता है।

 

बिस्तर पर मेरे दादाजी का मरण हुआ था।तो कल मेरा भी बिस्तर पर मरण प्राप्त हो गया तो क्या होगा। सभी विचार व्यक्ति धर्म के पथ पर चलने से पहले ही करता है। जो भी व्यक्ति इस प्रकार के जालो में उलझा रहता है, वह कभी भी धर्म के पथ पर आगे नहीं बढ़ पाता। मनुष्य भव के दुर्लभ क्षणों को व्यर्थ गवा देने से अच्छा है की संसार से दृष्टि मोड़ें। और स्वयं के परमात्मा को उजागर करने का पुरुषार्थ करें और आत्मीय सुख प्राप्त करें।

संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी

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