गणिनी आर्यिका105 विशुद्धमति माताजी के 50 वे गणिनी पदारोहण दिवस भाव भीनी विन्यांजली

धर्म

गणिनी आर्यिका105 विशुद्धमति माताजी के 50 वे गणिनी पदारोहण दिवस भाव भीनी विन्यांजली
विशुद्धमति माताजी ने 13 साल की उम्र में घर छोड़ा, 40 से ज्यादा आर्यिकाओं को दे चुकी दीक्षा, लिख दिए 51 शास्त्र

जिस उम्र में बच्चा कुछ समझ भी नहीं पाता है। उस उम्र में वो धर्म से जुड़ गईं। 13 साल की उम्र में सांसारिक मोह का त्याग कर दिया। 24 साल की उम्र में गणिनी का पद हासिल किया। 54साल के वैराग्य में 50 से ज्यादा आर्यिकाओं को दीक्षा दे चुकी और 51 शास्त्र लिख चुकी हैं।

 

 

 

यह हम सभी के लिए गौरव का क्षण है की इसके लिए भीलवाड़ा की संयम यूनिवर्सिटी उन्हें डॉक्ट्रेट की उपाधि दे चुकी हैं। ऐसा जैन समाज की गणिनी आर्यिका विशुद्धमति माता ने कर दिखाया है। उनका 50वां गणिनी पदारोहण दिवस संयम 14 से 16मार्च तक शाश्वत तीर्थ सम्मेदशिखर जी में मनाया जा रहा है।तीन दिन में देशभर से अनेकों भक्तो के लोग शामिल हो रहे है।


एक परिचय गुरु मां विशुद्धमति माताजी
गणिनी गुरु माँ विशुद्धमति माताजी का जन्म लश्कर ग्वालियर में 1949 में हुआ। उनका सांसारिक नाम माया था। माता श्रीदेवी और पिता सेठ गुलजारी लाल थे। 4 साल की उम्र में माया ने मोक्ष मार्ग के पथिक महा मुनिराज के प्रवचन सुने तो आलू खाना छोड़ दिए, 13 साल की उम्र में महामुनि राज का सानिध्य मिला और उनकी आहारचर्या कराने का पुण्य मिला।
उनकी साधना उनके व्यक्तितव पर प्रकाश डाले तो उन्होंने 14 साल की उम्र में ब्रह्मचर्य धारण कर लिया। और
आर्यिका दीक्षा 1970 में ली।

इन्होंने1966 में गृह त्याग किया। तब से व्रत ग्रहण, के लोचन भी किया। रसों का भी त्याग किया। इसी के साथ 1968 में दही का त्याग किया। एवम 20साल की उम्र गिरनार गौरव आचार्य श्री 108 निर्मल सागर महाराज से आर्यिका दीक्षा ली।

 

पूज्य माताजी ने 1971 से अनेकों बहनों को धर्म मार्ग पर अग्रसर करते हुए मोक्षमार्ग पर आरूढ़ कर दीक्षाए प्रदान की। इन्होंने अब तक 50 से अधिक आर्यिका दीक्षाए प्रदान की हैं।

 

इतना ही नही पूज्या माताजी की प्रेरणा से जयपुर, कोटा में बालिका छात्रावास निर्मित है।जो सचमुच अभूतपूर्व है। पूज्या माताजी अपनी आत्म साधना सदा लीन रहती है। एवम दिनभर धर्म की कक्षाएं लेती हैं और रात को शास्त्र लेखन करती हैं। माताजी अब तक 51 से ज्यादा शास्त्र लिख चुकी हैं। जिसका भीलवाड़ा की यूनिवर्सिटी 9 मार्च को कोटा में विमोचन किया। इसी के साथ इन्हें डॉक्ट्रेट की उपाधि भी प्रदान की गई है।

 

 

सर्वाधिक दीक्षा प्रदात्री गणिनी आर्यिका विशुद्धमति माताजी की साधना आपका संयम देखते ही बनता है। इन्होंने जिनसंस्कारो का प्रस्फुटन कर अनेक बालिकाओ का जीवन उन्नत कर आर्यिका दीक्षा देकर मोक्ष मार्ग की और प्रशस्त किया है

इतना ही नहीं इनके लिये कहा जाता है जो है विश्व मे एक मात्री सर्वाधिक दीक्षा प्रदात्री वह है गणिनी आर्यिका विशुद्धमति माताजी जो एक कीर्तिमान से कम नहीं साधना की सतत प्रहरी गुरु माँ विशुद्धमति आज सारी धरा तुम्हारे ही गीत गा रही है भक्तो की टोली सम्मेदशिखर आ रही है। जितना लिखा जाये उनके व्यक्तित्व पर वह कम होगा ।

गुरु माँ के चरणों मे कोटी कोटि वन्डामी
अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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