*वर्षायोग समापन:- एक महत्वपूर्ण चिंतनीय अवलोकन – किसने क्या पाया* संजय जैन बड़जात्या कामां
किसी नगर व समाज विशेष में दिगंबर संतो आर्यिका माताओं के वर्षा योग होना बड़े ही पुण्य का प्रतिफल होता है। इस प्रतिफल के परिणाम स्वरूप गुरु और भक्तों के भाव एक दूसरे से समामेलित होते हैं। तो फिर वर्षा योग की फुहारों का आनंद उस समाज विशेष को मिलने लगता है।वर्तमान समय में अनेकों नगरों,कस्बों, गांवों एवं समाज विशेष में संतो के वर्षा योग बड़ी ही भव्यता और अनेकों धार्मिक सामाजिक कार्यों के साथ परिपूर्ण हुए हैं। हम सब इन वर्षा योग के कार्यक्रमों के साक्षी बनकर स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। वास्तविक रूप से धर्म, ध्यान,संयम और वैराग्य की अद्भुत धारा प्रस्फुटित हुई है। सन्तों का सामीप्य,समागम,प्रवचन व चर्या से सामाजिक,व्यवहारिक एवं आध्यात्मिक बदलाव आना स्वाभाविक क्रिया है। इस सबके मध्य अवलोकन केवल इतना ही करना है कि इस वर्षायोग के दौरान स्थानीय समाज के श्रावक- श्राविकाओं ,युवाओं और बच्चों को क्या मिला? एक वृहद अवलोकन करना अति आवश्यक है। यह विषय बड़ी ही गूढ़ता लिए हुए हैं, किंतु इस विषय पर चिंतन, मनन, मंथन अति आवश्यक है।
साधु संतों के चातुर्मास / वर्षा योग में समाज की अपेक्षाएँ होती है की :-
*वर्षा योग में संतों की साधना के साथ समाज की ज्वलन्त व गंभीर समस्याओं पर विचार विमर्श व समाधान की राह प्रगट हो*
*चातुर्मास मुख्य रूप से जीव दया , तप साधना, धर्म प्रभावना व सद्भावना का महा महोत्सव हो*
*चातुर्मास में जैन समाज की घटती जनसंख्या , युवाओ का भटकाव , विजातीय व विधर्मी विवाह , नाम के साथ जैन उपनाम लिखना , जनगणना में धर्म के कालम में जैन लिखना , जैसे सामाजिक मुद्दों पर कार्य हो*
*तीर्थ क्षेत्रों की व मंदिरों की सम्पतियों की सुरक्षा व्यवस्थाओं पर कार्य हो*
*बालको / युवाओ को धर्म से जोड़ने व संस्कारवान बनाने का कार्य हो*
*संतों के सानिध्य में चातुर्मास समाज में परस्पर वैमनस्य, वैरऔर विरोध को दूर करने का सशक्त माध्यम बने । क्षमा पर्व की धारणा एक स्वस्थ और सभ्य समाज की गारंटी है।*
*इस प्रकार जैन धर्म में चातुर्मास का सामाजिक और धार्मिक महत्व तो है ही व्यक्ति और समाज को एक सूत्र में पिरोने का भागीरथ प्रयत्न भी है*|
*इन सब के अलावा भी संतों के प्रवास के समय कई महत्वपूर्ण मुद्दों जैसे संतों के विहार में सुरक्षा , प्रवास के समय भवन /स्थान आदि पर सरकारी सहयोग , जैन साहित्य के डिजिटिलाइजेशन , हस्त लिखित धार्मिक ग्रंथों / शास्त्रों की सुरक्षा जैसे गंभीर विषयों पर विचार विमर्श की संभावनाएं होती है।*
*यह अत्यंत ही मंथन योग्य व विचारणीय विषय है कि हमने या हमारे समाज ने इस चातुर्मास को सफल व उपयोगी बनाने में कहाँ तक सफलता प्राप्त की है* केवल वृहद आयोजनों,संगोष्ठियों, कार्यक्रमो में उलझ कर रह गए या कुछ आन्तरिक बदलाव भी हुए। सम्पूर्ण वर्षायोग का चिंतवन भी अतिआवश्यक है जो प्रत्येक श्रावक को आवश्यक रूप से करना ही चाहिए।
संजय जैन बड़जात्या,कामां,राष्ट्रीय प्रचार मंत्री धर्म जागृति संस्थान

