बुरा कर्म हमेशा बुरा ही रहेगा उसे वह कितना भी अच्छा कहे खूब दान करे लेकिन कोई उसे अच्छा नहीं कह सकता प्रमाण सागर महाराज
भोपाल
“बुराकर्म” हमेशा बुरा ही रहेगा उसे वह कितना भी अच्छा कहे खूब दान करे लेकिन उसे कोई अच्छा नहीं कह सकता” उपरोक्त उदगार मुनि श्री प्रमाण सागर महाराज ने विद्याप्रमाण गुरूकुलम में आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किये।
मुनि श्री ने उदाहरण देते हुये कहा कि पहले के डकैत डकैती डालने जाते थे और मनन्त मानते थे कि यदि अच्छी डकैती हाथ लगी तो मंदिर में घंटा चढ़ाएगे। मुनि श्री ने कहा कि बताइये अपने बुरे काम में भगवान को भी शामिल कर लिया? ऐसे हीआजकल कोई व्यक्ति गलत कार्य करके धन को कमाता है और खूब दान देता है तो क्या आप लोग इसे अच्छा कर्म कहेंगे? मुनि श्री ने कहा कि भले ही आप लोग दान मत दो चलेगा लेकिन किसी के घर डाका डाल कर या किसी का दिल मत दुखाओ “जैसी करनी वैसी भरनी” यह युक्ति आप लोगों ने सुनी होगी।
मुनि श्री ने कहा कि एक आदमी मरा तो उसका लेखा जोखा देखा गया तो उसके सब काले कारनामे थे तो उससे पूछा गया कि तुमने अपनी जिंदगी में कोई अच्छा कार्य किया हो तो बताइये? उस आधार पर स्वर्ग भेजा जा सकता है उसने बहुत याद किया लेकिन उसने कोई अच्छा कार्य किया ही नहीं था तो बताए क्या उसे याद आया बचपन में एक बार चवन्नी का दान किया था वह भी एक की अठन्नी चुराकर तो चित्रगुप्त ने कहा कि चोरी का माल दान करके स्वर्ग में कोई जगह नहीं है”हर व्यक्ति चाहता है,उसके जीवन में कोई बुरा प्रसंग न घटे, सब कुछ अच्छा अच्छा हो लेकिन कर्म सिद्धांत कहता है,कि जैसा तुम करोगे वैसा तुम भरोगे घर आंगन में यदि बबूल का पेड़ लगाया है तो उसमें बबूल की कांटेदार फलियां ही आएगी उसमें मीठे मीठे फल नहीं लग सकते,उसी प्रकार जीवन में कुछ अच्छा पाना चाहते हो तो अपने द्वारा किये जा रहे कार्यों की खुद समीक्षा करोअपनी आत्मा का विश्लेषण करके देखो और निर्णय करो कि मेंने अभी तक जो भी कार्य किये है उनमें से कितने कार्य अच्छे किये है?
मुनि श्री ने कहा कि अनुकूलताऐं पाने के पश्चात भी जो अपनी आत्मा का अहित कर रहा है क्या आप उसे अच्छा कहोगे?लोग दूसरों के प्रति बुरा कम करते है,खुद के प्रति बुरा ज्यादा करते है,और विडंबना यह है कि उसे बुरा मानते ही नहीं ऐसे लोग कभी भी अपनी आत्मा का हित नहीं कर सकते जो अपनी आत्मा का हित नहीं कर सकता वह दूसरे की आत्मा का हित भी नहीं कर सकता, मुनि श्री ने कहा कि कर्म के संयोग से अच्छा शरीर पाया और सभी अनुकूलताए मिली उसे आत्महित में लगायें “आत्महित का ध्यान रखने वाला ही परहित का कार्य कर सकता है” अपने आपको त्याग संयम और भगवान की आराधना से जोड़ें। उपरोक्त जानकारी प्रवक्ता अविनाश जैन विद्यावाणी ने दी।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी 9929747312





