6 माह 3 दिन के बाद हुआ गुरु शिष्या का महामिलन :-

धर्म

6 माह 3 दिन के बाद हुआ गुरु शिष्या का महामिलन :-
गुन्सी

श्री दिगम्बर जैन सहस्रकूट विज्ञातीर्थ गुन्सी (राज.) में विराजित गणिनी आर्यिका रत्न विज्ञाश्री माताजी की संघस्थ आर्यिका माताजियों का लंबे समय के बाद अपनी गुरु माँ से महामिलन हुआ ।

 

 

सभी आर्यिका माताजी की गुरु मिलन की खुशी में आंखों से अश्रुधारा बह निकली । गुरु शिष्य का यह मिलन बहुत ही भावुक सभी माताजियों ने पूज्य गुरु मां के पाद – प्रक्षालन किये । सवाईमाधोपुर , जयपुर , निवाई , चाकसू आदि स्थानों से पधारे हुए सभी गुरु भक्तों ने गुरु – शिष्या के इस अद्भुत मिलन के पल को देखकर अपने पुण्य की सराहना करते हुए गुरु मां की जय – जयकार की । पूज्य माताजी ने वात्सल्य भाव से सभी को आशीर्वाद दिया ।

पूज्य माताजी ने सभी को मंगल उद्बोधन देते हुए कहा कि – जिस तरह मछली नीर के बिना नहीं रह सकती उसी प्रकार एक शिष्य की भी यही स्थिति है वह भी अपने गुरु के बिना नहीं रह सकते । जिस प्रकार भगवान ने गुरु की ओर संकेत कर उन्हें स्वयं से श्रेष्ठ बताया, उसी तरह माता-पिता भी गुरु को अपने से श्रेष्ठ मानते हैं। वास्तव में माता-पिता तो जन्म देकर पालन-पोषण करते हैं, लेकिन किसी को आदर्श मनुष्य का आकार देने वाला तो गुरु ही है।

गुरु संसार की श्रेष्ठ पदवी है, जो अपने शिष्य को सर्वोत्तम बनाने के धर्म का निर्वहन करता है। केवल गुरु-शिष्य संबंध ही आध्यात्मिक संबंध है, क्योंकि गुरु ही ईश्वर का मार्ग दिखाता है।

गुरु ही जीवन का रहस्य बताता है। गुरु ही मानव के जीवन से जुड़े लक्ष्य भेद को सिद्ध कराने में समर्थ हो सकता है। जिस भी साधक ने गुरु की महिमा को आत्मसात किया, वह भवसागर से पार हो गया। शरीर व आत्मा का तत्व दर्शन, जीव की मीमांसा, ईश्वर की खोज और संसार का आश्रय गुरु के मार्गदर्शन से ही संभव है। आत्मोद्धार के पथिक गुरु महिमा से पूर्ण सफलता पाते हैं। इसीलिए गुरु को पारंपरिक एवं मूल पथप्रदर्शक बताया गया है, जिस पर चलकर आत्मबोध की यात्रा सरल हो जाती है।
आगामी 10 दिसम्बर 2023 को होने वाले पिच्छिका परिवर्तन एवं 108 फीट उत्तुंग कलशाकार सहस्रकूट जिनालय के भव्य शुभारम्भ में सम्मिलित होकर इस सुअवसर में साक्षी बनकर पुण्यार्जन करें ।

संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *