आगम कीर्ति स्वामी का विश्व प्रसिद्ध श्रवणबेलगोला मठ के स्वामी के रूप में राज्याभिषेक
श्रवणबैलगोला
विश्व प्रसिद्धश्रवणबेलगोला मठ के स्वामी के रूप में आगम कीर्ति स्वामी का राज्याभिषेक अतिशय श्री क्षेत्र श्रवणबेलगोला सोमवार 27 मार्च 2023 को प्रात: 9 बजे राज्याभिषेक होगा
श्रवणबेलगोला यानी महान शक्ति और भक्ति का स्थान, दुनिया की सबसे ऊंची बाहुबली मूर्ति आज पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा है। यह चारुकीर्ति स्वामी थे जो श्री मठ को अपनी प्राचीन भव्य जैन विरासत के साथ आगे ले गए, जहां हर 12 साल में होने वाला महामस्तकाभिषेक दुनिया का ध्यान आकर्षित करता है। यहां कार्यक्रम लगातार होते रहते हैं।
श्री मठ को अब नए स्वामी के रूप में आगम कीर्ति स्वामी का राज्याभिषेक सोमवार 27 मार्च 2023 को सुबह धार्मिक आयोजन के साथ होगा
जीवन परिचय आगम कीर्ति स्वामी का
विश्वास नहीं होता कि सागर का कोई लड़का ऐसे क्षेत्र का स्वामी बन सकता है..!! सागर शिमोगा कर्नाटक के विनोबानगर निवासीऔर नेहरू मैदान में जैन मंदिर के पुजारी अशोक कुमार इंद्र और अनीता के दूसरे पुत्र अगम को हाल ही में अगम कीर्ति स्वामी के रूप में दीक्षित किया गया था, जो 21 वर्ष की आयु में दीक्षित हुए थे। श्रीमान इंद्रकुमार और श्रीमती अनीता जैन के दूसरे पुत्र आगम को हाल ही में 21 साल की उम्र में एक सम्मान रुपी पद देकर आगम कीर्ति स्वामी के रूप में दीक्षित किया गया था, जो उनके धार्मिक अभ्यास के कारण है।
इन्होने बचपन से ही धार्मिक विचारों का पालन किया और अपनी प्रारंभिक शिक्षा सागर के रोटरी स्कूल में पूरी की और फिर एमजीएन में अपनी माध्यमिक शिक्षा पूरी की। हाई स्कूल के बाद उन्होंने उजीरे में स्नातक की पढ़ाई पूरी की और कंप्यूटर शिक्षा के साथ सागर के एलबी कॉलेज में बीकॉम की डिग्री हासिल की. इसके साथ ही वे पेंटिंग में भी काफी रचनात्मक कार्य किए और उन्होंने देश के कई गरीब लोगों के चित्र बनाए, जो उनकी खास खूबी है। लगभग 8 बार रक्तदान उनके सामाजिक सरोकार का दर्शाता हैं
इनके जीवन पर प्रकाश डाले तो इन्होने जमीन से उठकर इस स्तर को पाया इन्होने परिवार के साथ इनके पिता और माता के साथ सिलाई की और साथ ही जैन बसदी में पूजा करते हुए अत्यधिक गरीबी में पले-बढ़े, इसके साथ ही उन्होंने अपने भाई के साथ स्वरोजगार शुरू किया और खुद को लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया। इतना ही नहीं किसी के कमरे उपयोग न करने की मनोवृत्ति विकसित करके अपने पैरों पर खड़े होने की उनकी इच्छा थी,
यु कहे की मुकाम हासिल करने वालों का रास्ता, उनके जैसा बनने को तरसा है, स्वाभिमान को जीवन बनाना है, हजारों लोगों का आश्रय बनना , आज की उपलब्धि है व सभी के लिए प्रेरणास्रोत है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि उनके दादा अदप्पा इंद्र, जो सागर शिमोगा कर्नाटक के शरावती बैकवाटर क्षेत्र में करूर के पंच कुटा बसदी के आदि कदंबरा शाही पुरोहित परिवार से आए थे, बहुत लोकप्रिय हैं और ऐसी परंपरा में पले-बढ़े हैं कि यह सब अगम इंद्र के लिए तपस्या का मार्ग। उनके बड़े चाचा पार्श्वनाथ इंद्र भी करूर क्षेत्र से हैं एक पुजारी होने के नाते, उन्होंने अपने पिता अशोक कुमार इंद्र और पंडित मोहन कुमार और कई अन्य लोगों के साथ खुद को धार्मिक पूजा अनुष्ठानों में अपना सहयोग दिया और लगातार कई धार्मिक कार्यो मे अपनी सक्रिय सहभागिता दी। एक बहुत ही सरल और सज्जनतापूर्ण जीवन व्यतीत करने वाले व्यक्तित्व उन्होंने अपने जीवन को इस तरह से ढाला की किसी को चोट न पहुंचे, उन्होंने हमेशा कुछ नया सोचा
यह एक स्वर्णिम क्षण है कहा जा सकता है कि यह विशेष बात है कि इन्हे स्वामी जी की उपाधि आगमकीर्ति के रूप मे मिली। यह एक दुर्लभ व्यक्ति है जिन्होने अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए और घर की देखभाल करते हुए और धार्मिक गतिविधियों का संचालन किया है। यह सभी के लिए गौरव एवम शान का विषय है कि उन्होंने बिना किसी स्वार्थ के अपने को आगे बलवती किया
सागर का अपना धार्मिक इतिहास है और जैनियों के लिए एक विशेष निवास स्थान है। सागर शहर में सौ जैन परिवार हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में कई जैन परिवार हैं जिन्होंने अपना जीवन बना लिया है और खुद को धार्मिक प्रथाओं में संलग्न कर लिया है। ऐसे सागर के आधार से पूर्व सोंडा मठ तक, अब चामराज नगर का कनकगिरी मठ और सागर को कम्बदहल्ली मठ का गर्व है, सागर तालुक तक प्रीफेक्ट होने के नाते और कई दिगंबर मुनियों, ब्रह्मचारियों और इतने पर कई धार्मिक डिग्री में। विशेष रूप से सागर के लिए आगम कीर्ति ने श्रवणबेलगोला के स्वामी के रूप में उनके राज्याभिषेक की महिमा को और बढ़ा दिया है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी