गणिनी प्रमुख आर्यिका ज्ञानमति माताजी ने चौथी तक किए अध्ययन उसके बाद भी पांच भाषा में लिखे ग्रंथ जन्म दिवस पर आलेख
इस युग की महान आर्यिका गणिनी प्रमुख आर्यिका 105 ज्ञानमति माताजी का आज अवतरण दिवस मना रहे यह हम सभी का गौरव है कि हम ऐसी गुरु मा के काल में हम हुए उनकी आशीष हमे प्राप्त हो रही है।
गुरु मा आर्यिका ज्ञानमती माताजी की सांसारिक शिक्षा भले ही चौथी कक्षा तक हुई हो लेकिन उन्होंने संस्कृत, मराठी, कन्नाड़, हिंदी सहित पांच भाषाओं में 460 ग्रंथ लिखे हैं। इतना ही नहीं 81 वर्षीय आर्यिका 62 साल का साधु जीवन व्यतीत कर चुकी हैं, जो किसी भी दिगंबर जैन समाज के 1500 साधु-साध्वियों के कुनबे में सबसे अधिक है। उनकी प्रेरणा से मांगी-तुंगी तीर्थ स्थल नासिक में भगवान ऋषभदेव की 108 फीट ऊंची दुनिया की अखंड पाषाण से बनी सबसे बड़ी मूर्ति का निर्माण हुआ है।
आर्यिका ज्ञानमती माताजी को 1995 में अवध विश्वविद्यालय फैजाबाद और तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय मुरादबाद द्वारा 2012 में डी-लिट की मानद उपाधि दी गई। है।
आर्यिका ज्ञानमति माताजी हर दिन केवल चार घंटे विश्राम करती है। दिन के शेष 20 घंटे प्रभु आराधना और स्वाध्याय में व्यतीत करती है। माताजी कहती है मौन साधना से भी जीवन शक्ति का विकास होता है।
महिला सशक्तिकरण पर देती है जोर
गुरु मा का महिला सशक्तिकरण के विषय पर कहती है की महिलाओं के सशक्तिकरण के किस तरह प्रयास होने चाहिए के जवाब में आर्यिका माताजी का कहना है कि शिक्षा के जरिए महिलाएं अपने अधिकारों को पहचान सकती हैं। इसके लिए अखिल भारतीय दिगंबर जैन महिला संगठन भी बनाया गया है। जो बच्चियों को शिक्षा सहायता उपलब्ध कराता है।
धन्य हैं वे भविष्य दृष्टा आचार्य श्री वीरसागर जी महाराज जिन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से इनकी प्रतिभा का आकलन कर इन्हें ‘‘ज्ञानमती’’ नाम दिया। आपकी उत्कृष्ट साधना एवं कठोर तपस्या का ही यह प्रभाव है कि आपके सम्पर्क में आने वाला प्रत्येक श्रावक/श्राविका आपके सम्मुख स्वयमेव नतमस्तक हो जाता है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के दर्शन करने आर्यिका माताजी बुंदेल खंड गई थी तब आचार्य श्री ने ,बड़ी बहन की संज्ञा देकर संबोधन दिया था।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी