भावना भव नाशिनी होती है ,भगवान के अभिषेक के बिना पूजन अधूरा होता हैआचार्य श्री वर्धमान सागर जी

धर्म

भावना भव नाशिनी होती है ,भगवान के अभिषेक के बिना पूजन अधूरा होता हैआचार्य श्री वर्धमान सागर जी
पारसोला वर्तमान में अष्टांहिका का पर्व चल रहा है यह पर्व वर्ष में तीन बार आता है अष्टांहिका पर्व में कृत्रिम और अकृत्रिम चेत्यालयों में देवता जाकर पूर्ण भक्ति भाव से पूजन करते हैं। आगामी 13 नवंबर से 25 नवंबर तक नगर पारसोला में सर्वतोभद्र विधान का पूजन समाज द्वारा कराया जा रहा है। विधान में पूजन करने से पुण्य में वृद्धि होती है आप मनुष्यों को देवता बनकर पूजन करने का भाग्य मिल रहा है मनुष्य पर्याय बहुत ही पूर्व जन्म के संचित पुण्य से मिलती है। इसमें आप अपने भाग्य को सौभाग्य में बदल सकते हैं। भावना भव नाशिनी होती है इसलिए परिणाम और भावों को निर्मल रखना चाहिए। भगवान के अभिषेक का उद्देश्य होता है कि आपकी आत्मा पर जो कर्म रूपी मेल लगा है वह भगवान के अभिषेक और भक्ति से दूर हो। भगवान के पूजन बिना अभिषेक अपूर्ण है इसलिए पूजन के पूर्व अभिषेक सभी को करना चाहिए। स्वयं के गुणों में वृद्धि करने के लिए पूजन में भगवान का गुणानुवाद किया जाता है। जयंतीलाल कोठारी समाज अध्यक्ष दशा हूमड़ समाज तथा ऋषभ पचौरी अध्यक्ष वर्षायोग समिति ने बताया कि आगामी 13 नवंबर से स्थानीय श्यामा वाटिका में सर्वतोभद्र विधान का आयोजन किया गया है। आचार्य श्री के प्रवचन के पूर्व बाहर से पधारे अतिथियों एवं स्थानीय समाज जनों द्वारा पूर्वाचार्यों के चित्र का अनावरण कर दीप प्रज्वलित किया गया।
राजेश पंचोलिया इंदौर से प्राप्त जानकारी संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी 9929747312

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *