सुख-दुख कर्म का फल आचार्य श्री वर्धमान सागर महाराज
उदयपुर
आचार्य श्री वर्धमान सागर महाराज ने उदयपुर के हुमड भवन में धर्म सभा को संबोधित करते हुए कर्म फल के बारे में बताया
आचार्य श्री ने कहा कि सुख-दुख कर्मों के ही प्रतिफल है, उन्होंने कहा कि तीर्थंकर भगवान परम उपकारी होते हैं।
उनके मन में तो यही भावना होती है कि इस संसार के सभी प्रकार के भटकने वाले जीवों को मोक्ष की प्राप्ति हो सकें। संसार में सुख और दुख को एक दूसरे के विपरीत बताते हुए महाराज श्री ने कहा कि यह कर्म फल के साथ क्रमवार जीवन में आते हैं। परम सुख के लिए साधना का पुरुषार्थ एवं 16 कारण भावनाओं को धारण करना होता है। और इसी से आत्मा का कल्याण होता है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी

