जब भी बोलो “हित मित प्रिय बोलो”अथवा मौन रहो। प्रमाण सागर महाराज
इंदौर
पूज्य मुनि श्री 108 प्रमाण सागर महाराज ने उत्तम सत्य धर्म पर मंगल प्रवचन देते हुए कहा कि विचारों की शुद्धी” और “मन की पवित्रता” से ही निश्चलता,निष्कलुषता,निष्कपटता, तथा निस्वार्थता ये चार गुण प्रकट हो जाते है। वह मनुष्य छल कपट राग द्वैष से ऊपर उठकर”उत्तमसत्यधर्म” का पालन कर अपने आचरण में उतार पाता है।
मुनि श्री ने पर्वराज पर्युषण दशलक्षण धर्म के पांचवे दिवस उत्तम सत्यधर्म के दिन प्रातःकालीन मोहताभवन रैसकोर्स रोड़ पर धर्म सभा में कहे। मुनि श्री ने कहा कि मधुर वचन सहृदयता और वैचारिक उदारता का प्रतीक है,जब कि मन में दरिद्रता आते ही व्यक्ति असत्य की ओर दौड़ने लगता है तथा घटिया शव्दों के चयन से माहोल भी घटिया कर देता है, इसलिये कहा गया है कि जब भी बोलो “हित मित प्रिय बोलो”अथवा मौन रहो।
मुनि श्री ने कहा कुछ लोगों कि आदत होती है बात बात पर वह झूठ बोलते है, ऐसे लोगों की बात पर कोई विश्वास नहीं करता तथा कुछ लोग मजाक मजाक में झूठ बोलते है वह लोग ऐसे कर्म बांधते है कि उसका फल उनको कही जन्मों तक भोगना पड़ता है। “महाभारत” इसका साक्षात उदाहरण है। सत्य निष्ठा और
निश्चल प्रवृत्ति का उदाहरण देते हुये कहा युद्ध के17 दिन बीत गये पराजय की स्थिति देख गुरु द्रोणाचार्य के कहने पर दुर्योधन धर्मराज युधिष्ठिर के पास अजेय होंने का उपाय पूछते है, तो निश्चल भाव से युधिष्ठिर उनको अजेय होंने का मार्ग बताते है, तुम्हारे घर पर ही तुम्हारी माता गांधारी है जिन्होंने अपने नेत्रों से अपने पति के अलावा किसी ओर को नहीं देखा उनके नेत्रों में वह शक्ति है कि वह तुम्हारे शरीर के जिस भाग को देख लेंगी तो वह भाग वज्र के समान अपराजेय हो जाएगा, दुर्योधन धर्मराज युधिष्ठिर की बात पर विश्वास करके सूर्योदय के पूर्व नग्न अवस्था में माता गांधारी के महल की ओर जा रहे थे कि रास्ते में “श्रीकृष्ण” मिल जाते है और उससे कहते है कि अल सुबह नंगे होकर कहा जा रहे हो?और वह अग्रभाग को पत्ते से ढंकवा देते है और पुत्र के आते ही माता गांधारी आंखों से पट्टी हटा लेती है दुर्योधन का पूरा शरीर अग्रभाग को छोड़कर वज्रमय हो जाता है,कथा का अंत सभी को मालुम है।
महाराज श्री ने कहा, मेरा उद्देश्य कथा सुनाने का नहीं बल्कि धर्मराज युधिष्ठिर की सत्यवादिता और निश्चलता का है। घटिया शब्दों के चयन से माहोल भी घटिया हो जाता है,कुछ लोग कहते है कि सच कड़वा होता है सच कभी कड़वा नहीं होता आपके कहने का तरीका गलत हो सकता है।नम्रता और सम्भाषण से आपका व्यवहार झलकता है विनम्रता और वाणी की मधुरता ही मनुष्य की शोभा है “शब्द” तो वही है लेकिन यदि आपके कहने का लहजा गलत है,तो वह बुरा लगता है एक मां जब अपने बच्चे को डांटती हुई “गधा” कह देती है तो बच्चे को बुरा नहीं लगता क्योंकि डांट के पीछे भी माधुर्य छिपा है वही यदि कोई दूसरा कहे तो?
मुनि श्री ने कहा कि जो वचन मन को संताप उत्पन्न करे वह असत्य की कोटी में ही आते है,इसलिये हमेशा हित मित प्रिय बचनों का ही प्रयोग करो,जो आदमी अपने ही वचनों से मुकर जाता है वह भरोसे के काबिल नहीं होता।
दयोदय महासंघ तथा धर्मप्रभावना समिति इंदौर के प्रवक्ता अविनाश जैन मीडिया प्रभारी राहुल जैन ने बताया श्रावक संस्कार शिविर का शुभारंभ प्रातः5 बजे मुनि श्री प्रमाणसागर जी महाराज के मुखारविंद से भावनायोग,एवं भगवान की शांतीधारा से हुई तत्पश्चात नित्यनियम पूजन एवं दशलक्षण विधान तथा पर्व पूजन संपन्न हुई।दौपहर में तत्वार्थसूत्र का वाचन एवं मुनि श्री के द्वारा स्वाध्याय कराया गया सांयकाल6 बजे शंकासमाधान एवं आरती के पश्चात समापन हुआ।इस अवसर पर धर्मप्रभावना समिति के पदाधिकारियों ने सभी अतिथियों का सत्कार किया श्रावक संस्कार शिविर में सभी शिवरार्थिओं को शुद्ध एवं सोला का मर्यादित भोजन कराया जा रहा है जिसका संचालन पीयूष जैन जयपुर कर रहे है।
अविनाश जैन विदिशा से प्राप्त जानकारी
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी 9929747312