प्राणायाम से कार्बन डाइऑक्साइड व बेड हारमोंस निकल जाते हैं आचार्य कनकनंदी

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प्राणायाम से कार्बन डाइऑक्साइड व बेड हारमोंस निकल जाते हैं आचार्य कनकनंदी

भीलुडा
विश्व धर्म प्रभा एलकर आचार्य श्री कनकनंदी गुरुदेव ने भीलुड़ा शांतिनाथ जिनालय में अंतरराष्ट्रीय वेबीनार को संबोधित करते हुए बताया कि प्राणायाम सुखासन में मेरुदंड को 90 degree इसमें रीढ़ की हड्डी सीधी रहे ऐसे आसन में प्राणायाम करना चाहिए।

 

 

 

 

 

 

उन्होंने इसके फायदे बताते हुए कहा कि प्राणायाम से कार्बन डाइऑक्साइड बेड हारमोंस निकल जाते हैं तथा न्यूरॉन सक्रिय होते हैं। उत्तम विचार उत्तम आहार उत्तम पर्यावरण प्राणायाम आदि से गुड हारमोंस स्राव होते हैं। आत्मा को परमात्मा बनाने के लिए उत्तम विचार आवश्यक है। मैं अमृत हूं कभी न मरता मैं अविनाशी तन तो विनाशी। मैं हूं अमृत स्वरूप इस कविता का पाठ सुविज्ञ सागर जी ने किया आचार्य श्री द्वारा रचित कविता बहुत मार्मिक है। आचार्य श्री ने बताया कि हम शरीर नहीं आत्मा है इसमें किसी प्रकार का दोष संभव नहीं आत्मा दिव्य स्वरूप है। पाप के कारण भूकंप अतिवृष्टि अनावृष्टि अकाल आदि दुर्घटनाएं घटती है। डर इर्षा घृणा भेदभाव अनंत दिव्य स्वरूप के अभाव होता है। रिलैक्स ऑफ माइंड रिलैक्स ऑफ ऑल ऑर्गन होता है। ज्ञान बिना ध्यान नहीं होता। ध्यान बिना स्वाध्याय का सदुपयोग नहीं होता

 

 

 

ज्ञान से अनात्म तत्व राग द्वेष काम क्रोध आदि विभावों का विसर्जन तथा अनासक्ति होती हैं। देव शास्त्र गुरु के माध्यम से स्व का ध्यान करना चाहिए। एकाग्र होकर चिंताओं का निरोध करके ध्यान किया जाता है। शुभ रूप में प्रशस्त आनंद रूप में बिना संक्लेश से मन स्थिर करना चाहिए। आत्म ध्यान सर्वश्रेष्ठ है। ध्यान करने वाला ध्याता होता हैं। भाव प्रशस्त नहीं होने पर आर्त ध्यान रोद्र ध्यान अधिक होता हैं। मोक्ष की इच्छा रखने वाले मुमुक्षु होते हैं। संसार शरीर रोगों के प्रति अनासक्ति होने पर चित्त शांत होता है। तन्मय होने से पाप दूर रोग दूर होते हैं। स्वयं पर विजय प्राप्त करने वाला विश्व विजयी बनता है।

मन के दास नहीं बनना चाहिए मन को दास बनाना चाहिए जिताक्ष का अर्थ है अक्ष अर्थात इंद्रियां इंद्रियों पर विजय पाना,। कीर्ति के लिए धर्म करने पर मन स्थिर नहीं रहता। अस्थिर मन वाले के ध्यान करने की योग्यता ही नहीं होती। प्रसिद्धि दिखावा लोकेषणा मै आसक्त साधु का ध्यान नहीं हो पाता जो ऐसा चाहते हैं उनके ज्ञान रूपी नेत्र नष्ट हो जाते हैं। ध्यान करने की योग्यता नष्ट हो जाती है। भीड़ में श्रेष्ठ चिंतन लेखन नहीं हो सकता।

 

 

विजयलक्ष्मी जैन से प्राप्त जानकारी
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी

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