अंधविश्वास आत्मविश्वास को कमजोर करता है प्रमाण सागर महाराज
भोपाल
“विश्वास हमारी ताकत है,तो अंधविश्वास हमारी कमजोरी,जिन बातों से हमारी धार्मिक निष्ठा,हमारी आस्था का कोई संबंध नहीं है,उसे धर्म मानकर, करना ही अंधविश्वास है” उपरोक्त उदगार राष्ट्रीय संत शंका समाधान के प्रणेता मुनि श्री प्रमाण सागर महाराज ने “अ” अक्षर तथा नकारात्मक शब्दों से शुरु हुई अंतिम बीसवे प्रवचन का समापन करते हुये व्यक्त किये।
उपरोक्त जानकारी देते हुये प्रवक्ता अविनाश जैन विद्यावाणी ने बताया मुनि श्री ने विद्यासागर प्रबंध संस्थान में प्रातःकाल हुये प्रवचन में कहा कि “भय और लालच अंध विश्वास का सबसे बड़ा कारण है” इससे न केवल मानसिक अशांति उत्पन्न होती है, बल्कि व्यक्ति कई ढोंगियों के चक्कर में आकर अपना आर्थिक नुकसान भी कर बैठता है।
मुनि श्री ने कहा कि जहा आत्मविश्वास प्रगति का आधार है,वही अंध विश्वास प्रगति का सबसे बड़ा बाधक है,उन्होंने कहा कि ताज्जुब तो तब होता है जब अच्छे अच्छे पड़े लिखे व्यक्ती भी इन मूढ़ताओं के शिकार हो जाते है। जो व्यक्ती आत्मविश्वास से भरा होता है वह अपने कर्म और पुरुषार्थ पर भरोसा करके अपनीउपलब्धियों से शिखर तक पहुंचता है तथा वही दूसरा व्यक्ती है, जो थोथे कर्मकांड में उलझकर कुछ भी करने को तैयार हो जाता है।
मुनि श्री ने कहा कि जीवन में प्रगति और उन्नति चाहते हो तो कर्मवादी बनो कर्मकांडी बनकर पतन का रास्ता मत चुनो, अपने अंतर्मन में झांककर देखो कि मेरे अंदर अंदर कोई अंधविश्वास या अज्ञानता तो नहीं पनप रही मुनि श्री ने कहा हम कितनी क्रियाएं तो ऐसी करते है जिनका कोई आधार ही नहीं है जैसे पेड़ के चक्कर लगाना, ताले के पैर पढ़ना,दहरी पूजना आदि आदि यदि पूछा जाये तो कहते हें कि यह हमारे यहा कि यह रीती है।
मुनि श्री ने कहा कि मैं रीती रिवाज का विरोधी नहीं हूं लेकिन उस रीती रिवाज का कोई कारण भी तो हो जैसे भोजन करने के पूर्व एक रोटी का टुकड़ा निकाल कर एक तरफ रख कर यह भावना भाते है कि इस जगत में कोई भी जीव भूखा न सोये और उसे किसी पक्षी को डाल देते है, रोटी बनाते समय पहली रोटी गाय की ऐसी क्रियायें जिनका कोई अर्थ हो उनको करने में कोई बुराई नहीं लेकिन “डर” के मारे अपनी दुकान या संस्थान को बंद करते समय ताले को प्रणाम करना? इससे हमारे दुकान की या घर की रक्षा हो जाएगी यह अज्ञान वश या रूढिवादिता कहलाती है।
कुछ लोग बिल्ली रस्ता काट गई या गधा रैकने लगा तो अपने सारे कार्यक्रम रद कर देते है मुनि श्री ने कहा कि जिन बातों से हमारी धार्मिक निष्ठा का कोई संबंध नहीं है उसे धर्म मानकर करना धार्मिक अंधविश्वास कहलाता है,उन्होंने कहा कि तर्क की कसौटी पर परिणाम पर विचार करो भय या लालच में न आकर आत्म स्वरूप का ज्ञान करो तथा कर्म सिद्धांत को ध्यान में रखोगे तो कोई भी आपको अंधविश्वास में फंसा नहीं सकता।
अविनाश जैन विद्यावाणी से प्राप्त जानकारी
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी 9929747312