पूज्य की भक्ति मनोभाव से पूजन करके पूज्य बन सकते है वर्तमान साधु परंपरा आचार्य श्री शांति सागर जी की देंन हैं आचार्य श्री वर्धमान सागर जी।

धर्म

पूज्य की भक्ति मनोभाव से पूजन करके पूज्य बन सकते है वर्तमान साधु परंपरा आचार्य श्री शांति सागर जी की देंन हैं आचार्य श्री वर्धमान सागर जी।
धरियावद शास्त्रों में श्रावक के 6 प्रमुख कर्तव्य बताए गए हैं जिसमें दान और पूजा मुख्य कर्तव्य है ।पूजन दो प्रकार की होती है नित्य पूजा और नेमत्रिक पूजा इसके पूजा के अंतर्गत बड़े-बड़े विधानों की पूजन की जाती है इससे पुण्य की प्राप्ति होती है आज सिद्धचक्र मंडल विधान में आप 1024 अर्घ्य चढ़ाएंगे ।यह मंगल देशना सिद्धचक्र मंडल विधान के पूजन अवसर पर आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने प्रकट की, राजेश पंचोलिया इंदौर अनुसार आचार्य श्री ने आगे बताया कि पूजन करते समय प्रमाद आलस्य नहीं करना चाहिए क्योंकि जिनकी हम पूजा कर रहे हैं उन पूजन में उनके गुणों का वर्णन किया जाता है। पूज्य सिद्ध भगवान के अनंतानंत गुणों की पूजन करते हुए एक दिन स्वयं भी पूज्य बन सकते हैं ।इसलिए धार्मिक विधान में पूजन मनोभाव भक्ति से करना चाहिए इससे पुण्य की प्राप्ति होती है।हमने नगर प्रवेश के समय कहा था कि धार्मिक महोत्सव प्रारंभ हो गए प्रतिदिन धार्मिकअनुष्ठान क्रियाएं हो रही है सिद्धचक्र मंडल विधान की पूजन का आयोजन आपने किया ,52 जिनालय निर्माण का मानस बनाया ,दीक्षा संस्कार देखने का आपको अवसर मिला। अब आगामी दिन में जिन बच्चों का जन्म पिछली होली से इस होली के मध्य हुआ है उनमें भी जैनत्व के संस्कार शिशुओं में मंत्रोच्चार विधि पूर्वक संघ सानिध्य में किए जाएंगे। आगम में श्रावकों की 53 संस्कार क्रियाएं बताई गई है। जिसमें छोटे बच्चों को नवजात शिशुओं को भी जैनत्व के संस्कार दिए जाते हैं। आज का दिन श्रमण परंपरा के लिए बहुत बड़ा दिन है क्योंकि प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवर्तीआचार्य श्री शांति सागर जी महाराज जिनका आचार्य पद शताब्दी महोत्सव पूरे वर्ष भर मनाया जा रहा है आज के ही दिन फागुन शुक्ल चतुर्दशी को सन 1920 में आपने यरनाल में पंचकल्याणक के अवसर पर मुनि दीक्षा अंगीकार की थी। जिस समय अपने दीक्षा ली थी मुनि धर्म बताने वाला मुलाचार ग्रंथ का प्रकाशन तब नहीं हुआ था किंतु आप में पूर्व जन्म में मुनि दीक्षा लेने के संस्कार थे जिसके कारण आपने आगम अनुरूप मुनि धर्मचर्या का पालन किया आपने अपने साधु जीवन में जैन धर्म, जैन मंदिरों ,सरस्वती जिनवाणी की रक्षा के लिए अपने प्राणों जीवन की परवाह नहीं की जिन मंदिर के संरक्षण के लिए 1105 दिनों तक अन्न आहार का त्याग कर एक आदर्श उपस्थित किया ।आपके साधु जीवन में आप पर अनेक उपसर्ग आए आपने 9938 उपवास ,18 करोड़ मंत्रों का जाप किया। बच्चों को धर्म की शिक्षा देने के लिए आज सभा में पूर्व से प्रचलित रात्रि पाठशाला को विभिन्न दाताओं के तन, मन,एवं धन से सक्रिय करने का संकल्प लिया गया ।पंडित हंसमुख शास्त्रीअनुसार आगम अनुसार प्रथमाचार्य श्री शांति सागर जी की मूल बाल ब्रह्मचारी निर्दोष अक्षुण्ण परंपरा का पालन वर्तमान में पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्धमान सागर जी विश्वस्तरीय धर्म प्रभावना के साथ कर रहे हैं । प्रतिष्ठाचार्य हंसमुख जी ने सभा में बताया कि हमें पूज्य मुनि श्री महोत्सव सागर जी ओर मुनि श्री उत्सव सागर जी की 8 दिवसीय उपवास तथा श्राविका श्रीमती तारा जैन अहमदाबाद की 8 दिन उपवास की अनुमोदना का पुण्य अवसर मिला ।14 मार्च को प्रातः श्री जी के पंचामृत अभिषेक,के बाद आचार्य श्री की मंगल देशना के बाद विश्व शांति हेतु महायज्ञ हवन होगा दोपहर को 1 वर्ष के बालक बालिकाओं में जैनत्व के संस्कार आचार्य श्री वर्धमान सागर जी द्वारा मंत्रोच्चार से किए जाएंगे।
राजेश पंचोलिया इंदौर से प्राप्त जानकारी संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी 9929747312

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