जो सच बोलता है वह कभी दुखी नहीं होता प्रज्ञा सागर महाराज
झालरापाटन।
दिगंबर जैन समाज के 10 लक्षण पर्व के पांचवें दिन उत्तम सत्य धर्म को अंगीकार कर विशेष पूजा अर्चना की गई। दिगंबर जैन समाज के सभी मंदिरों में सुबह से ही शांति धारा, अभिषेक के साथ नित्य नियम और 10 लक्षण की पूजन हुई। शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर में इस मौके पर विशेष रूप से श्रावकों ने भगवान शांतिनाथ की प्रतिमा कीशांति धारा की।
शांतिनाथ बाड़ा मे आचार्य प्रज्ञा सागर महाराज के सानिध्य में विधानाचार्य राजकुमार जैन बैंक वाला ने संगीतकार कटनी निवासी पदमचंद जैन के मधुर स्वर लहरियों के साथ विधान की पूजन करवाई। जिसमें मंगलाचरण इंदौर निवासी प्रखर जैन ने प्रस्तुत किया। सोधर्म इंद्र बने पंकज संदीप कासलीवाल परिवार के साथ अन्य पुरुष एवं महिलाओं ने पूजन की। प्रवक्ता यशोवर्धन बाकलीवाल ने बताया कि दोपहर 2:30 बजे से शांतिनाथ मंदिर में हेमश्री माताजी के सानिध्य में तत्वार्थ सूत्र, शांतिनाथ बाड़ा मे शाम 6:30 बजे से प्रतिक्रमण और 7:00 बजे से आनंद यात्रा हुई। इसके बाद मौजूद श्रावकों ने आचार्य प्रज्ञा सागर महाराज की आरती की। इससे पूर्व बुधवार रात को अष्टानिका के अवसर पर विशेष प्रतिक्रमण करवाया जिसमें बड़ी संख्या में महिला एवं पुरुष तथा बच्चों ने भाग लिया। इस दौरान सबकी आंखों पर काली पट्टी बांधकर प्रतिक्रमण करवाया। नवमी पर कलश हुए। भाद्रपद शुक्ल पक्ष नवमी पर गुरुवार को शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर, चंद्रप्रभ मंदिर, पार्श्वनाथ मंदिर, सांवलाजी मंदिर, आदिनाथ मंदिर में शाम को भगवान की प्रतिमाओं के कलश हुए। जिसमें समाज के लोगों ने बढ़ चढ़कर भाग लिया।
सुगंध दशमी शुक्रवार को
दिगंबर जैन समाज के सभी मंदिरों में शुक्रवार को सुगंध दशमी मनाई जाएगी। जिसमें सभी मंदिरों में 16 कारण मंडल विधान बनाएं जाएंगे। शांतिनाथ मंदिर से शाम 4:30 बजे जुलूस निकलेगा जिसमें समाज के सभी लोग सामूहिक रूप से सभी मंदिरों में जाकर धूप क्षेपण करेंगे।
श्रावक कर रहे हैं उपवास।
10 लक्षण पर्व के दौरान 29 श्रावकों के 5 उपवास पूर्ण होंगे। इसके साथ ही श्वेता कासलीवाल का गुरुवार को नौवा उपवास चल रहा है। जो सच बोलता है वह कभी दुखी नहीं होता। तपोभूमि प्रणेता एवं पर्यावरण संरक्षण आचार्य प्रज्ञा सागर महाराज ने 10 लक्षण पर्व के दौरान प्रवचन में कहा कि जो सच बोलता है वह कभी दुखी नहीं होता है। जैन दर्शन में सत्य का अर्थ मात्र ज्यों का त्यो बोलने का नाम सत्य नहीं है,बल्कि हित मित प्रिय वचन बोलने से है। हितकारी वचन यानि जिसमें जीव मात्र की भलाई हो, जिन वचनों से यदि किसी जीव का अहित होता हो तो वे वचन सत्य होते हुए भी सत्य ही है। मित यानि मीठा बोलो अर्थात कड़वे वचन, तीखे वचन, व्यंग परक वचन, पर निंदा, पीड़ा कारक वचन सत्य होते हुए भी असत्य माने गए हैं। प्रिय वचन यानि जो सुनने में भी अच्छे लगे , ऐसे वचन ही सत्य वचन है। सत्य धर्म का बीज है और सत्य हमेशा सम्मान प्राप्त करता है। सत्य शब्दों में नहीं अनुभूति में होता है, शब्दों के माध्यम से जो कहा जाता है वह पूर्ण सत्य नहीं होता, लेकिन जब तक व्यक्ति सत्य से परिचित नहीं होता तब तक अंदर के सत्य को भी नहीं पा सकता है। ऐसे सत्य वचनों को समझे बिना जीव का कल्याण संभव नहीं है। सत्यवादी की ही सर्वत्र प्रतिष्ठा होती है, वही सुखी है। वाणी ही है जो मनुष्य की सभ्यता और असभ्यता की पहचान कराती है। वाणी मनुष्य को घायल भी कर सकती है और मरहम भी लगा सकती है। उन्होंने कहा कि आज का इंसान सत्य को भूलकर अपने स्वार्थ के लिए झूठ बोलते हैं। सत्य आत्मा का सौंदर्य है और सत्य की अनुभूति शब्द से नहीं सदाचरण से होती है। सत्य कुछ समय के लिए विचलित हो सकता है, परंतु पराजित नहीं हो सकता और अंत में सत्य की ही विजय होती है। इसलिए हमें इस पथ से कभी नहीं हटना है और हमेशा डटे रहना है।
नलिन जैन लुहाड़िया से प्राप्त जानकारीसंकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी 9929747312