जिसमे सबका हित हो वही बोलूँगा, यही सत्यधर्म है : निर्यापक मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज*
सागर
भाग्योदय तीर्थ परिसर में निर्यापक श्रमण मुनिश्री सुधासागर महाराज ने अपने मंगल प्रवचन में कहा की हमें दुनिया में जीना है, और मानना है कि
मैं अच्छा आदमी हूँ तो तुम्हारा समर्थन कौन कर रहा है। हमेशा अपनी जिंदगी में सत्य चाहिए है महानुभाव तो कुछ ऐसा करो कि करो तुम और खुशी दूसरे को हो जाए। करो तुम, गर्व किसी दूसरे को हो जाए। करो तुम और सम्मान किसी और को आवे। पास तुम हो और मिठाइयाँ कोई दूसरा बांटे। तुम खुश हो, ये सत्य है और सत्यधर्म कहता है तुम्हारी खुशी से कौन खुश है, तुम मुनि बन गए हो तुम्हारे मुनि बनने से किसी को खुशी है क्या? तुम पूजा करते हो, दान देते हो तुम्हारे पूजा व दान देने से कोई खुश है क्या?
क्या तुम्हारी कोई भी क्रिया अपने विरोधी का ज्ञान करती है, यदि विरोधी का ज्ञान करा रही है तो समझना समर्थन मिल गया। आप की यह धर्म की क्रिया है, इसका मतलब है तुम अधर्म को जानते हो, यह अच्छाई है इसका अर्थ है तुम बुराई को जानते हो। दो बातें देखना, पहला- कभी तुम्हे स्वयं की अनुभूति हुई, कभी तुम्हे लगा कि मैं सही रास्ते पर हूँ। मैं सही कर रहा हूँ, ये तो सबको मालूम है क्योंकि सुसाइड करने वाला भी कहता है मैं सही कर रहा हूँ, ये सत्यधर्म का लक्षण नही, सही करते समय तुम्हे अनुभव में होना चाहिए कि गलत भी कोई चीज है, गलत की अनुभूति होना चाहिए।
दूसरा-गर हमें अनुभूति नहीं होती कि हम पुण्यात्मा है, मुझे सदा संदेह बना रहता है कि मैं सही हूँ या नहीं। सत्य के इतने पहलू है कि जहाँ चाहे वहाँ से तुम सत्य तक पहुंच जाओगे लेकिन सत्य को धर्म बनाना। तुम सही हो या गलत, तुम अपने आप को कितना मानते हो, सबसे पहले दो बाते खोजों, दुनिया में कितने लोग तुम्हें सही मानते हैं। बस गवाह लाओ, जो गवाह बिकने वाला, बदलने वाला न हो, इसलिए तुम सही हो तो गवाह लाओ। प्रकृति ने तुम्हें जन्म से ही दो गवाह दिए, तुम जो कुछ भी कर रहे हो, इन दो गवाह के हस्ताक्षर कर दो, ये दो गवाह बोल दे कि तुम सही हो तो निश्चित रूप से सारा जगत तुम्हें सही मान लेगा, जिसका नाम है माता-पिता।
मार्मिक प्रवचन देते हुए महाराज श्री ने कहा आप अपने बेटे को हर किसी को नहीं सौंपते, यह प्रकृति माँ है जब तू कहीं से मरता है तो प्रकृति सौ बार सोचती है, इस आत्मा को किसकी गोदी में डालूँ जो इसका जन्म-जन्म का हितैषी होगा। बेटा बैरी हो सकता है, माँ-बाप कभी बैरी नहीं होते। क्या आप अपने माँ-बाप की दृष्टि में सही हो, उनकी दृष्टि में लायक हो या नालायक, बस बाप की दृष्टि में लायक बन जाओ, इसका नाम है सत्य धर्म। तुम जो खा रहे हो, देख रहे हो, कर रहे हो, जो कुछ भी तुम्हारे पास है तुम माँ-बाप की दृष्टि में सही हो। यह गवाह तुम्हारे हर कार्य में बने रहें, तो तुम्हें दुनिया का कोई सुप्रीम कोर्ट भी जेल नही भेज सकता क्योंकि गवाह तुम्हारे पक्ष में है।
अब परमार्थ के क्षेत्र में आए सत्य धर्म तक पहुंचाने के लिए गवाह चाहिए, पूज्य कुन्दकुन्द स्वामी प्रवचनसार की चारित्र चूलिका में कहते है, तुम अपने आप को धर्मात्मा मानते हो सही मानते हो गवार लाओ, कौन है गवाह- किसी गुरु को गवाह बना लेना। गुरु इसलिए नहीं बनाया जाता कि वह गुरु है, गुरु इसलिए बनाया जाता है कि मेरी जिंदगी में गुरु की गवाह चाहिए कि मैं सही हूँ।
बड़ी शक्तियाँ अभिशाप देती नहीं है अभिशाप लगता है, माँ-बाप कभी अभिशाप देते नहीं, माँ-बाप को इतना भाव आ गया जिंदगी में मैंने ऐसे बेटे को जन्म देकर गलती की, मैं तो निपूती रह जाती तो अच्छा था, बस हो गया भस्म, अब उस बेटे को कोई शक्ति समूर्छन में जन्म लेने से नही बचा सकती, अनाथ होगा क्योंकि माँ बाप के मन मे ये भाव आ गया मैंने जन्म देकर गलती की। यदि माँ-बाप को ये भाव आ जाएगा कि मुझे गर्व है कि ऐसा बेटा बिटिया हुआ, जाओ एक दिन तुम तीर्थंकर की गोदी में खेलोगे।
दीक्षा देने वाला गुरु जिनवाणी माँ जिसकी प्रशंसा करते हैं, यह दोनों जिसकी प्रशंसा करते हैं वही गुरु बनने लायक है वह जगतगुरु होता है। सबका हित किसमें है? यदि तुमने असत्य भी बोला है तो सत्यधर्म तुम्हें गले से लगा लेगा क्योंकि असत्य बोला है सामने वाले के हित के लिए। जिस सत्य के बोलने से दूसरे का विनाश होता है वह सत्य भी मत बोलो। जिसमे सबका हित हो वही बोलूँगा, यही सत्यधर्म है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी9929747312
हमें दुनिया में जीना है और मानना है कि मैं अच्छा आदमी हूँ तो तुम्हारा समर्थन कौन कर रहा है। हमेशा अपनी जिंदगी में सत्य चाहिए है महानुभाव तो कुछ ऐसा करो कि करो तुम और खुशी दूसरे को हो जाए। करो तुम, गर्व किसी दूसरे को हो जाए। करो तुम और सम्मान किसी और को आवे। पास तुम हो और मिठाइयाँ कोई दूसरा बांटे। तुम खुश हो, ये सत्य है और सत्यधर्म कहता है तुम्हारी खुशी से कौन खुश है, तुम मुनि बन गए हो तुम्हारे मुनि बनने से किसी को खुशी है क्या? तुम पूजा करते हो, दान देते हो तुम्हारे पूजा व दान देने से कोई खुश है क्या?
क्या तुम्हारी कोई भी क्रिया अपने विरोधी का ज्ञान करती है, यदि विरोधी का ज्ञान करा रही है तो समझना समर्थन मिल गया। आप की यह धर्म की क्रिया है, इसका मतलब है तुम अधर्म को जानते हो, यह अच्छाई है इसका अर्थ है तुम बुराई को जानते हो। दो बातें देखना, पहला- कभी तुम्हे स्वयं की अनुभूति हुई, कभी तुम्हे लगा कि मैं सही रास्ते पर हूँ। मैं सही कर रहा हूँ, ये तो सबको मालूम है क्योंकि सुसाइड करने वाला भी कहता है मैं सही कर रहा हूँ, ये सत्यधर्म का लक्षण नही, सही करते समय तुम्हे अनुभव में होना चाहिए कि गलत भी कोई चीज है, गलत की अनुभूति होना चाहिए।
दूसरा-गर हमें अनुभूति नहीं होती कि हम पुण्यात्मा है, मुझे सदा संदेह बना रहता है कि मैं सही हूँ या नहीं। सत्य के इतने पहलू है कि जहाँ चाहे वहाँ से तुम सत्य तक पहुंच जाओगे लेकिन सत्य को धर्म बनाना। तुम सही हो या गलत, तुम अपने आप को कितना मानते हो, सबसे पहले दो बाते खोजों, दुनिया में कितने लोग तुम्हें सही मानते हैं। बस गवाह लाओ, जो गवाह बिकने वाला, बदलने वाला न हो, इसलिए तुम सही हो तो गवाह लाओ। प्रकृति ने तुम्हें जन्म से ही दो गवाह दिए, तुम जो कुछ भी कर रहे हो, इन दो गवाह के हस्ताक्षर कर दो, ये दो गवाह बोल दे कि तुम सही हो तो निश्चित रूप से सारा जगत तुम्हें सही मान लेगा, जिसका नाम है माता-पिता।
आप अपने बेटे को हर किसी को नहीं सौंपते, यह प्रकृति माँ है जब तू कहीं से मरता है तो प्रकृति सौ बार सोचती है, इस आत्मा को किसकी गोदी में डालूँ जो इसका जन्म-जन्म का हितैषी होगा। बेटा बैरी हो सकता है, माँ-बाप कभी बैरी नहीं होते। क्या आप अपने माँ-बाप की दृष्टि में सही हो, उनकी दृष्टि में लायक हो या नालायक, बस बाप की दृष्टि में लायक बन जाओ, इसका नाम है सत्य धर्म। तुम जो खा रहे हो, देख रहे हो, कर रहे हो, जो कुछ भी तुम्हारे पास है तुम माँ-बाप की दृष्टि में सही हो। यह गवाह तुम्हारे हर कार्य में बने रहें, तो तुम्हें दुनिया का कोई सुप्रीम कोर्ट भी जेल नही भेज सकता क्योंकि गवाह तुम्हारे पक्ष में है।
अब परमार्थ के क्षेत्र में आए सत्य धर्म तक पहुंचाने के लिए गवाह चाहिए, पूज्य कुन्दकुन्द स्वामी प्रवचनसार की चारित्र चूलिका में कहते है, तुम अपने आप को धर्मात्मा मानते हो सही मानते हो गवार लाओ, कौन है गवाह- किसी गुरु को गवाह बना लेना। गुरु इसलिए नहीं बनाया जाता कि वह गुरु है, गुरु इसलिए बनाया जाता है कि मेरी जिंदगी में गुरु की गवाह चाहिए कि मैं सही हूँ।
बड़ी शक्तियाँ अभिशाप देती नहीं है अभिशाप लगता है, माँ-बाप कभी अभिशाप देते नहीं, माँ-बाप को इतना भाव आ गया जिंदगी में मैंने ऐसे बेटे को जन्म देकर गलती की, मैं तो निपूती रह जाती तो अच्छा था, बस हो गया भस्म, अब उस बेटे को कोई शक्ति समूर्छन में जन्म लेने से नही बचा सकती, अनाथ होगा क्योंकि माँ बाप के मन मे ये भाव आ गया मैंने जन्म देकर गलती की। यदि माँ-बाप को ये भाव आ जाएगा कि मुझे गर्व है कि ऐसा बेटा बिटिया हुआ, जाओ एक दिन तुम तीर्थंकर की गोदी में खेलोगे।
दीक्षा देने वाला गुरु जिनवाणी माँ जिसकी प्रशंसा करते हैं, यह दोनों जिसकी प्रशंसा करते हैं वही गुरु बनने लायक है वह जगतगुरु होता है। सबका हित किसमें है? यदि तुमने असत्य भी बोला है तो सत्यधर्म तुम्हें गले से लगा लेगा क्योंकि असत्य बोला है सामने वाले के हित के लिए। जिस सत्य के बोलने से दूसरे का विनाश होता है वह सत्य भी मत बोलो। जिसमे सबका हित हो वही बोलूँगा, यही सत्यधर्म है ‼️