सत्य को जानने का आपका उद्देश्य है तो जिनवाणी मां का सहारा लैना ही पड़ेगा नियमसागर महाराज
विदिशा
सत्य को जानने का आपका उद्देश्य है तो जिनवाणी मां का सहारा लैना ही पड़ेगा उपरोक्त उदगार संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज केशिष्य एवं निर्यापक श्रमण मुनि श्री नियमसागर महाराज ने शीतलधाम विदिशा में व्यक्त किये
उन्होंने कहा अरिहंत भगवान की वाणी भव्य जीवों के पुण्य योग निमित्त से चार बार खिरती है।और आप सभी भव्य आत्माओं का पुण्य योग था और आपको चातुर्मास मिल गया। गुरु के मुख से विदिशा का नाम ही आया। मुनि श्री ने कहा “कषाय” आत्मा के साथ मिलकर प्रभाव डालती है तो कोई अच्छा कार्य नहीं कर पाती अनादि काल से यह आत्मा अपराध करती चली आ रही है,तभी तो यह बार बार जन्म मरण का चक्कर नहीं छूट रहा है।
मुनि श्री ने कहा कि जब तक आप दूसरों के कार्य करते रहोगे तो यह आत्मा का आश्रव रुकने वाला नहीं है अनादि काल से यह शरीर
धारण किया फिर छोडा फिर धारण किया यह सिलसिला अभी तक चला आ रहा है। मुनि श्री ने कहा कि इसके दो ही कारण हे हम शरीर से कभी स्थिर होकर बैठ नहीं पाए और कर्म का आश्रव करते रहे विवाह के पश्चात पति हो या पत्नी 7 जन्म का साथ मांगते हो हालांकि महाराज श्रैणिक ने तीर्थंकर बनने का जो सौभाग्य हांसिल किया उसका श्रैय महारानी चेलना को जाता है जब तक राजा श्रैणिक को चेलना समझ में नहीं आई तब वह अशुभ उपयोगी रहे “उपयोग सो योग नहीं, योग सो उपयोग नहीं” जीव जब जब शरीरधारी बनेगा तब काय योग शरीर ही बनेगा।
प्रवक्ता अविनाश जैन ने बताया प्रात: जिनेन्द्राभिषेक के पश्चात 8:30 से मुनिसंघ के प्रवचन प्रतिदिन चल रहे है 4 अगस्त रविवार को चातुर्मास कलश की स्थापना दौपहर डेढ़ बजे से है।
संकलित जानकारी के साथ अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी की रिपोर्ट 9929747312