अन्तर्मना उवाच *ये ज़रूरी नहीं कि सब लोग हमें देखे, सुने और समझ भी ले..*क्योंकि तराजू सिर्फ वजन बता सकती है, क्वालिटी नहीं..!*

धर्म

*अन्तर्मना उवाच *ये ज़रूरी नहीं कि सब लोग हमें देखे, सुने और समझ भी ले..*क्योंकि तराजू सिर्फ वजन बता सकती है, क्वालिटी नहीं..!*

*ये ज़रूरी नहीं कि सब लोग हमें देखे, सुने और समझ भी ले..*
*क्योंकि तराजू सिर्फ वजन बता सकती है, क्वालिटी नहीं..!*सच तो यही है कि अभी हमको ना देखना आया, ना सुनना आया, और ना समझना आया —

 

 

 

 

🔸 अभी हम देखने को देखते हैं, क्योंकि सब देख रहे हैं इसलिए हम भी देख रहे हैं।🔸 सुनने को हम सुन रहे हैं, पर जो हम कह रहे हैं, वो कोई भी नहीं सुन रहा है।🔸 समझने को हम समझ रहे हैं, पर सच यही है कि हम कुछ भी नहीं समझ रहे हैं, सिवाय अपने स्वार्थ के।वर्षों वर्षों से विद्वान, पंडित, सन्त, आचार्य और साधुओं को सुनने के बाद भी हमारे जीवन में कोई परिवर्तन नहीं, ना व्यवहार में – ना आचार में। *हमने कहा ना – अभी हम सन्तों को नहीं, अपने आपको, अपनी परम्परा को, अपनी मान्यता को ही सुनते हैं।* हम वही सुनते हैं जिससे हमारी धारणा मजबूत होती है। जो हमें बदलता है उसे हम सुनते ही नहीं है।

 

 

*ध्यान रखना!* सब साधु सन्त, पण्डित, विद्वान, पादरी अपनी परम्परा, मान्यता, पन्थ और सम्प्रदाय की गन्दगी को ही परोस रहे हैं। इसलिए जीवन में परिवर्तन नहीं आ रहा है।

 

 

अभी हम धर्म के मर्म से बहुत दूर है। *धर्म का मर्म है — अहिंसा, संयम, दया, मैत्री, सदभाव, भाई चारा और परोपकार।* अभी हम एक दूसरे को पीछे करने में लगे हैं। प्रतिस्पर्धा की अंधी दौड़ में दौड़ रहे हैं। प्रतिस्पर्धा की दौड़ का कोई अन्त नहीं है। *जहाँ से प्रतिस्पर्धा की शुरुआत होती है वहीं से प्रेम, मैत्री, सदभाव और अपनापन समाप्त हो जाता है…!!!*।

 

नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद से प्राप्त जानकारी संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी 9929747312

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