क्षमा अपनी है और क्रोध पराया हैआचार्य श्री 108 सुबल सागर जी महाराज

धर्म

क्षमा अपनी है और क्रोध पराया हैआचार्य श्री 108 सुबल सागर जी महाराज
चंडीगढ़
अपने स्वभाव में रहना धर्म है जिस प्रकार हम अपनी वस्तु या व्यक्ति को खुद से दूर नही जाने देते उसी प्रकार क्षमा अपनी है उसे कहीं से लाया नही जाता यह सदैव से अपने पास ही है पराया तो क्रोध है। और क्रोध से ज्यादा हानिकारक कुछ और नही है।

 

 

उपरोक्त कथन परम पूज्य तपस्वी जैन संत आचार्य श्री सुबल सागर जी महाराज ने व्यक्त किये। ज्ञात हो कि जैन समाज का सबसे बड़ा पर्व दशलक्षण पर्व आज से प्रारंभ हो गये हैं।

इन दश दिन तक जैन श्रावक जप तप त्याग संयम ध्यान साधना में अपने समय को व्यतीत करते है।

बड़े ही जोर शोर उत्साह के साथ आज पर्व का प्रारंभ हुआ। जिसमें महिला वर्ग द्वारा कलश यात्रा निकाली गई। श्री धर्म बहादुर जैन, करुण जैन,नवरत्न जैन, अमित जैन आदि द्वारा बढ़ चढ़कर होने वाली क्रियाओं में सहभागिता की गई। दोपहर में तत्व चर्चा का विशेष आयोजन किया गया। व शाम को गुरु भक्ति आरती एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम संपन्न किये गये।

संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *