पूज्य क्षुल्लक श्री गणेश प्रसाद जी वर्णी,जैनागम शिक्षा गुरुकुलो, आगम अनुवाद,प्रकाशन व अनेक आचार्यों -संतो व विद्वानों के जनक

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पूज्य क्षुल्लक श्री गणेश प्रसाद जी वर्णी,जैनागम शिक्षा गुरुकुलो, आगम अनुवाद,प्रकाशन व अनेक आचार्यों -संतो व विद्वानों के जनक

हम बात कर रहे व क्षण जब प्राथमिक रूप से प्राप्त मात्र 1 रु का दान गजब कर गया,100 शिक्षण संस्थानों का निर्माण हो गया जी हा देश की आजादी की लड़ाई में सेना को सहयोग देने के लिए अपना कपड़ा तक नीलाम कर देने वाले राष्ट्र प्रेमी संत वजैनत्व – शिक्षा के लिए भागीरथ प्रयास करने वाले,संघर्ष में भी जीत का जज्बा रखने वाले,गहरी दूरदृष्टि रखने वाले थे क्षुल्लक श्री गणेश प्रसाद वर्णी जी।अगर गोर करे तो कोई भी जैन कुल में जन्म लेने से जैन नही होता अपितु हर वह व्यक्ति जो भगवान जिनेन्द्र के बतलाए मार्ग का अनुसरण करता है वही जैन है चाहे उसने किसी भी जाति में जन्म लिया हो।वर्तमान के अनेक दिग्गज आचार्यों की तरह गणेश प्रसाद जी का जन्म भी अजैन परिवार में हुआ था।किंतु उनके पिता के संस्कारों व समीपस्थ जैन मंदिर की वजह से उनमें जैनत्व के संस्कार बचपन से वृद्धिगत थे।

 

 

 

 

 

 

एक परिचय वर्णी जी का
आपका जन्म सन 1874 में यूपी बुंदेलखंड ललितपुर के हंसेरा ग्राम में हुआ था। जहा उनके घर के पड़ोस में स्थित जैन मंदिर में पदम पुराण की व्याख्यान को सुनकर मात्र 10 वर्ष की आयु में आजीवन रात्रि भोजन का त्याग कर लिया।15 वर्ष की आयु में वे पिता के व्यवसाय को छोड़कर स्कूल शिक्षक बन गए,उच्च जैन शिक्षा की चाहत उनके अंदर समाई हुई थी उसी दरमियान उनकी मुलाकात एमपी सिमरा खुर्द की चिरोंजी बाई से हुई,पूर्व जन्मों के संयोग से उनका एक धर्म मां – पुत्र के रूप में बेहतर रिश्ता स्थापित हुआ।मां चिरौजी बाई से उनकी आध्यात्मिक यात्रा और अत्यधिक गहरी होती गई,उच्च जैन शिक्षा की चाहत में वे अत्यंत संघर्षों के साथ जयपुर,मुंबई,मथुरा,खुर्जा व बनारस के साथ साथ अन्य भी अनेक जगहों पर जाकर अलग अलग पंडित विद्वानों से जैन शास्त्रों का गहन अध्ययन किया,धन की कमी के कारण उन्हें कई दिनों तक भूखा रहना मंजूर कर लिया लेकिन अध्ययन छोड़ना मंजूर नहीं किया। धन की कमी से उन्हें कई बार अपमानित भी होना पड़ा लेकिन प्रत्येक संघर्षों से जीत कर उन्होंने अनेक परीक्षाएं उत्तीर्ण करते हुए जैन शास्त्रों,व्याकरण में महारत हासिल प्राप्त कर ली।
अपने जीवन में जैनाग,संस्कृत,प्राकृत व व्याकरण की शिक्षा के लिए जो अत्यधिक संघर्ष उनको उठाने पड़े,अनेकानेक कठिनाइयों व अपमानो को झेलना पड़ा उससे दुःखी होकर वे बनारस गंगा के तट पर चिंतन कर रहे थे की अब किसी भी जिज्ञासु को इन शिक्षा के लिए इस तरह परेशानियां न हो इस हेतु बनारस में शिक्षण संस्थान खुलना चाहिए।

                             

पर उनके पास कोई धन नही था,वे रात्रि में तट पर दुःखी मन से रोते हुए सो गए और उसी रात्रि को किसी दिव्य शक्ति ने स्वप्न में उनसे कहा आप प्रयास करे अवश्य संस्थान खुलेगा।तभी प्रातः वहा पर एक श्रावक गुजरा उसने निराश मुद्रा में बैठे हुए गणेश जी पूछा क्या हुआ??क्यों दुःखी हो रहे हो,तो गणेश जी ने कहा में बनारस में जैन शिक्षण संस्थान खोलना चाहता हु जिस पर श्रावक ने कहा शिक्षण संस्थान खोलना कोई आसान बात नहीं ही है उसके लिए बहुत सारा धन चाहिए,फिर भी उस श्रावक ने गणेश जी के दुःख को कम करने के लिए एक रु दान के रूप में समर्पित किया,तब एक रु की कीमत आज के 100 रु के बराबर जरूर होगी लेकिन इतनी भी नही की उससे कोई संस्थान खोला जा सके।
किंतु गणेश प्रसाद जी इस एक रु से अत्यंत प्रसन्न थे।उन्होंने योजना बनाई व उस एक रु में 64 पोस्टकार्ड खरीदकर अपने परिचित सामर्थ्यवान प्रज्ञावान लोगो को पोस्टकार्ड के माध्यम से शिक्षण संस्थान खोलने के लिए आवश्यक संसाधनों के लिए सहयोग की अपेक्षा प्रेषित की।मेहनत रंग लाई अपेक्षित सहयोग प्राप्त हुआ और सर्व प्रथम बनारस में स्यादवाद जैन विद्यालय की स्थापना हुई।आगे चलकर श्री गणेश प्रसाद वर्णी जी के माध्यम से देशभर में 100 से अधिक शिक्षण संस्थानों का निर्माण हुआ।इन्ही गणेश प्रसाद वर्णी शिक्षण संस्थानों से पढ़कर कविशेखर आचार्य श्री ज्ञानसागर जी,आचार्य श्री सुनील सागर जी,आचार्य श्री विभव सागर जी,मुनि श्री सुश्रुत सागर जी,मुनि श्री शुभम सागर जी जैसे अनेकों महा विद्वान संत,हजारों विद्वान पंडित,शास्त्री,प्राकृत धुरंधर निकले जिन्होंने सम्पूर्ण विश्व में जैन धर्म के ज्ञान विज्ञान का शंखनाद किया व आज भी कर रहे है,इन्ही संस्थानों से सबसे पहले हमारे जैन ग्रंथों का विविध भाषाओं में अनुवाद,संकलन व प्रकाशन हुआ।श्री गणेश प्रसाद जी ने जैनागम की शिक्षा लेकर प्रचार प्रसार तो किया ही साथ में अपने चारित्र को भी उज्ज्वल व शिक्षा को चरितार्थ करते हुए क्षुल्लक जी बने
एक प्रसंग राष्ट्र भक्ति स्व जुड़ा

आप की राष्ट्र भक्ति का एक अनूठा प्रसंग देखने को मिला जब देश की आजादी के लिए आजाद हिंद फौज के सम्मेलन में आप मंचासीन थे तब सेना के सहयोग हेतु जनता से निवेदन किया जा रहा था तभी आपने अपने एक मात्र वस्त्र दुपट्टे को भी नीलाम किया जिससे प्राप्त 3000 रु आपने आजाद हिंद फौज की सेना के लिए समर्पित कर दिए। निश्चित रूप से श्री गणेश प्रसाद वर्णी जी शिक्षण संस्थान साक्षात मां जिनवाणी की सेवा केंद्र है, 125 वर्षों के क्रम में वर्तमान में यह शिक्षण संस्थान जो अर्थ अभाव की वजह से उपेक्षित हो रहे है वह पुनः विकास व आधुनिकीकरण व जीवंतता के लिए अर्थ सहयोग व जन जुड़ाव के लिए अपेक्षित है।इन संस्थानों का पुनः मजबूती के साथ जीवंत होना अत्यंत जरूरी है जिससे आचार्य श्री ज्ञानसागर जी व आचार्य श्री सुनील सागर जी जैसे अनेकों विद्वान विश्व जैन जगत को मिलते रहे।
देश के जैन उद्योगपतियों ,सामर्थ्य वान भामाशाहों को गणेश प्रसाद वर्णी जी द्वारा निर्मित हुए इन गुरुकुल संस्थानों के विकास हेतु अवश्य जुड़ना चाहिए। शाह मधोक जैन चितरी से प्राप्त
उपरोक्त समस्त आलेख पुज्यवर आचार्य श्री सुनील सागर जी गुरुदेव के प्रवचन से संकलित है ।
अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमडी

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