पुण्य को पैसो से नहीं बल्कि भावों से कमाया जाता है पूर्णमति माताजी
ग्वालियर
परमपूजनीय आर्यिका 105 पूर्णमति माताजी ने अपने मंगल प्रवचन में कहा कि पुण्य को पैसो से नहीं बल्कि भावों से कमाया जाता है, इसलिए भावो में कंजूसी नहीं करो। पुण्य अर्जन का अर्थ यह नहीं की पुण्य को जीवन भर के लिए और आगामी भव के लिए इकट्ठा करते चलो बल्कि पूजन करते समय इस जन्म व पिछले जन्म के सभी पुण्यों का प्रभु के चरणों में होम किया जाता है।
जैन धर्मशाला मुरार में धार्मिक शिक्षण शिविर के समापन अवसर पर बोलते हुए माताजी ने कहा कि पुण्य को होम करते समय प्रभु से कामना की जानी चाहिए कि मुझे पुण्य से ऊपर चीज चाहिए यानी वीतरागता पुण्य को समेट कर रखना एक तरह का परिग्रह है। धार्मिक शिक्षण शिविर के समापन समारोह मे शिविर की विभिन्न कक्षाओं के विजेताओं को पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया शिविर के करीब 600 प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र प्रदान किए गए। पूर्णमति माताजी द्वारा ली गई इष्टोपदेश की लिखित परीक्षा में डॉ वंदना जैन प्रथम, रुचि रूबी द्वितीय, अंजना व छाया जैन तृतीय रही। जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी 9929747312