पागलपन छोड़ो, क्षमा करना सीखो आचार्य श्री विशुद्ध सागर महाराज
नांदनीमठ (महाराष्ट्र
अध्यात्मयोगी आचार्य श्री विशुद्ध सागर गुरुदेव ने ” श्रावक संयम संस्कार शिविर में ‘पर्युषण महापर्व के प्रथम दिन • क्षमा धर्म पर उद्बोधन देते हुए कहा कि – “स्वभाव धर्म, है, विभाव अधर्म है।” क्षमा अमृत है, क्रोध महा- भयंकर विष है।” क्षमा शीतल नीर है, क्रोध अग्नि है। क्षमा धर्म है, अ क्रोध अधर्म है। क्षमा स्वभाव है, क्रोध विभाव है। क्षमाशील के पास आकर सिंह भी शांत बैठ जाता है। क्षमा से शत्रु भी मित्र बन जाता है। किसी को समझाने के राग में स्वयं ना. समझ न बनें।
हमारे द्वारा किसी को कष्ट न हो, हमारे द्वारा हम स्वयं पीड़ित न हो यही क्षमा धर्म है। जब व्यक्ति की इच्छा की पूर्ति न हो, मन चाहा कार्य न हो, इच्छा के विरुद्ध कार्य हो, पर्याप्त नींद न ली हो, अधिक थकावत हो, भूख लगी हो, उस समय व्यक्ति को क्रोध (गुस्सा) आता है। अपने जीवन को कष्टों से बचाना चाहते हो, यशपूर्ण सुखद जीवन जीना चाहते हो, अपयश से बचना चाहते हो, तो भूलकर भी क्रोध मत करो। क्रोध के कारण होने पर भी क्रोध नहीं करना।
क्रोध कलंक है। क्रोध पागलपन है।क्रोध अंधा होना है। क्रोध अनर्थकारी है। क्रोध पाप है। क्रोध अत्याचार है। क्रोध जहर है। क्रोध नरकादि दुर्गति का कारण है। क्रोध अचार है, बैर उसका
मुरब्बा है।
क्षमा शांति का प्याला है। क्षमा शीतल समीर है। क्षमा आनन्द है। क्षमा सुख का साधन है। क्षमा परमामृत है। क्षमा शिवत्व का द्वार है। क्षमा धर्म का आधार है। क्षमा यशस्वी बनाता है।
जियो और जीने दो यही क्षमा है। जीना तुम्हारा अधिकार है तो सभी को जीने देना तुम्हारा कर्तव्य है। हम जैसा अपने लिए चाहते हैं, वैसा ही सभी का ध्यान रखें। क्रोध को शांत करो, क्षमा धारण करो। क्षमाभाव ही विश्वशांति का मूल मंत्र है।
वैभव जैन बड़ामलहरा से प्राप्त जानकारी
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी 9929747312