हमारी सोच कोआपरेटिव होंना चाहिये, कोम्पटेटिव नहीं  प्रमाण सागर महाराज

धर्म

हमारी सोच कोआपरेटिव होंना चाहिये, कोम्पटेटिव नहीं  प्रमाण सागर महाराज
इंदौर

व्यक्ति अपने रुप रंग एवं बाहरी समृद्धी से ऊंचा नहीं उठता अपनी सोच से ऊपर उठता है” उपरोक्त उदगार मुनिश्री प्रमाणसागर महाराज ने रेसकोर्स स्थित मोहताभवन केआचार्य श्री विद्यासागर सभा मंडप में प्रातःकालीन प्रवचन सभा को सम्वोधित करते हुये कहे।

 

मुनि श्री ने कहा कि हमारी सोच कोआपरेटिव होंना चाहिये, कोम्पटेटिव नहीं, हमारी सोच इनोवेटिव होंना चाहिये कंजरवेटिव नहीं, उन्होंने कहा कि व्यक्ति अपनी सोच से ही ऊपर उठता है और अपनी सोच से ही नीचे गिरता है।

 

मुनिश्री ने दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति नेशनल मंडेला का उदाहरण देते हुये कहा कि बचपन में वह एक गुब्बारे वाले के पास पहुंचे और उससे पूछा कि आपके पास काला और सफेद रंग के गुब्बारे है क्या यह सभी गुब्बारे ऊपर एक समान ऊचाई को छूते है,तो गुब्बारे वाले ने जबाब दिया, हा सफेद और काला ही नही सभी रंग के गुब्बारे जिसमें गेंस भरी है वह सभी को एक समान ऊंचाई पर ले जाती है।उन्होंने कहा कि “ऊंचाई प्राप्त करने के लिये रंग नहीं हमारे विचारों की तरंग चाहिये”

 

 

 

 

उन्होंने आगे कहा कि “मिलकर रहने में जो जीवन का आनंद आता है वह अलग रहने में नहीं, उन्होंने दूध और पानी की मित्रता का उदाहरण देते हुये कहा “पानी ने दूध से कहा कि हमें भी आप शरण देकर अपने समान कर लो तो दूध ने सहजता से पानी को शरण देकर अपने समान कर लिया लेकिन जब दूध ने देखा कि जिसको उसने शरण दी उसे आग जला रही है तो उसने क्रोध में उफन कर उस आग को बुझाने तत्पर हो गया, तत्काल हलवाई ने दूध के उफान को देखा तो पानी के छींटे देकर दूध के क्रोध को शांत किया।उसी प्रकार अच्छी सोच बाले व्यक्ति की संगति में रहते है तो बिगडे़ कार्य भी संभल जाते है, घर परिवार में भी यदि आपत्ति विपत्ति में यदि हम एक दूसरे का सहयोग करें तो आई हुई विपत्ति भी टल जाती है। बस एक ही बात का ध्यान रखना चाहिये कि “कोई मेरा साथ दे या न दे में तो सभी का साथ दूंगा” यदि यह भावना आ जाए तो ऐसे परिवार को कोई तोड़ नहीं सकता।

 

 

 

उन्होंने शरीर का उदाहरण देते हुये कहा कि जब पैर में कांटा लगता है तो तुरंत मस्तिष्क उसे कमान्ड करता है,तुरंत हाथ को कमांड कर कांटे को निकालने के लिये आगे बड़ा देता है, जब पीड़ा होती है तो पूरा शरीर उसका साथ देता है, उसी प्रकार जिस दिन घर परिवार या समाज में यदि किसी को कांटा लगे तो समाज के प्रत्येक अंग यदि उस दर्द को महसूस कर उसका सहयोग करने लगे तो समाज उन्नति के शिखर पर पहुंच जाये। मुनिश्री ने कहा “जहा प्रेम होता है वंहा आपत्ति विपत्ति नहीं आती और आती भी है तो संभल जाती है। घर परिवार के प्रत्येक सदस्य को एक दूसरे का सहयोग करना चाहिये उन्होंने महानगर मुंबई के एक परिवार की सत्य घटना सुनाते हुये कहा बड़े भाई गांव में रहता था और छोटा महानगर मुम्बई में बंटवारे के पश्चात आपस में बोलचाल बंद था छोटे की बिटिया का संबंध एक बड़े घराने से आया तो उसने अपनी हैसियत जान उस रिश्ते को ठुकरा दिया यह बात जब बड़ेभाई को मालुम पड़ी तो वह सहजता के साथ छोटे के पास पहुंचा और कहा कि तेरी बेटी मेरी भी बेटी है उसका विवाह का पूरा खर्चा मे करुंगा तुझे चिंता करने की जरुरत नहीं और ठाठ बाट के साथ बेटी को उसी घर में विदा किया जहा से संबंध आया था हालांकि जिठानी के मन में यह बात खटकती रही लेकिन वह बोल नहीं पाई।

 

कुछ दिन बीते अचानक बड़े भाई की पत्नी का स्वास्थ्य बिगड़ा और उसे मुम्बई महानगर के अस्पताल में भरती करना पड़ा और सहजभाव के साथ देवर और देवरानी ने 40 दिन तक सेवा की और उससे अभिभूत होकर जिठानी ने कहा कि ईलाज से ज्यादा देवर देवरानी के प्रेम ने ठीक किया है।

 

मीडिया प्रभारी राहुल जैन एवं प्रवक्ता अविनाश जैन ने बताया रविवार 4 अगस्त को प्रातः का प्रवचन युवावर्ग के लिये विशेष सत्र रहेगा जिसमें पिछले 15 दिन मोटिवेशन का सारांश रहेगा। यह सत्र8-25 से शुरु होकर दो घंटे का रहेगा धर्म प्रभावना समिति के सभी पदाधिकारी युवावर्ग को आमंत्रित करती है कि सभी समय पर पधारें और अपने जीवन मूल्यों को समझें जिससे आप भविष्य के अच्छे ताने बाने बुन सकें।

संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी 9929747312

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