समंतभद्र स्वामी की परिभाषा को अपनी चर्या से परिभाषित करने वाले विनीतसागर जी
आश्विन शुक्ल पूर्णिमा का दिन वैसे तो पूर्णिमा शब्द ही पूर्णता को प्रकट करता है। आज के दिन परम पूज्य संत शिरोमणि आचार्य भगवंत श्री विद्यासागर जी के करकमलों से श्रमण परंपरा में सिद्धोदय क्षेत्र नेमावर जी में 16 अक्टूबर 1997 को पूज्य मुनिश्री विनीत सागर जी महाराज को मुनिदीक्षा प्रदान की गई इस दीक्षा के प्रसंग से आश्विन पूर्णिमा का यह दिन परमार्थरूपेण पूर्ण अर्थ को प्राप्त हुआ।
पूज्य मुनि श्री विनीत सागर जी महाराज जिनका जीवन ही मूलाचार का पाठ पढ़ाता है । एवं जिनके स्वरूप में आचार्य समंतभद्र स्वामी द्वारा प्रदत्त निर्ग्रन्थ मुनि का लक्षण प्रकट होता है
ऐसे पूज्य श्री का आज दीक्षा दिवस है। वैसे तो गुरू महिमा गुणगान हम अल्पबुद्धियों के लिए सागर को गागर में भरने का बालप्रयास है। फिर भी आज इस अवसर पर मैं शब्दरूपी अर्घ्य से अनर्घ्यपद दायक गुरु के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना चाहता हूँ।
आज जो जीवन धर्म के मार्ग में प्रयत्नशील है वो सब गुरु का प्रसाद ही है। जिससे आज इस आपाधापी के काल में भी यह मन भ्रमर गुरु चरण कमलों की भक्ति हेतु सदैव तत्पर रहता है।
पूज्य श्री का स्वाध्याय व ज्ञान के प्रति विनयभाव व स्वाध्याय में तत्परता सभी को प्रभावित करती है एवं यश कीर्ति से विमुखपना स्वतः ही सबको अपनी ओर आकर्षित कर लेता है।
जब पूज्य श्री मुनिश्री विनीत सागर जी एवं पूज्य मुनिश्री चन्द्रप्रभ सागर जी के पावन वर्षायोग का सौभाग्य रामगंजमंडी वालों को प्राप्त हुआ तब मुनिश्री को नजदीक से जानने का मौका मिला और उन्हें जाना तो ऐसा जाना कि अब लगता है जैसे जानने योग्य सब कुछ जान लिया ।
आपकाव्यक्तित्व आपका कृतित्व आपकी सौम्यशीलता एवं चेहरे पर प्रतिपल रहने वाली मुस्कुराहट जैसे सभी को जीवंत कर देती है।
आपका निर्मोहीपना संसारबंधनो को तोड़ने व निरन्तर
आत्मकल्याण मार्ग में यत्न करने की शक्ति प्रदान करता है।
मैं पूज्य श्री के चरणों में इस पावन पुनीत अवसर पर मैं उनके चरण कमलों में अनन्त बार नमोस्तु करता हूँ एवं प्रभु से कामना करता हूँ कि हम सब पर सदैव आपका आशीर्वाद बना रहे।
प्रशांत जैन आचार्य
रामगंजमडी