तपस्या करो मगर जगत की चाह मत करो आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज
उज्जैन
विशुद्ध भावों से किया गया तप ही सिद्धि का साधन है। तपस्या आत्मकल्याण के लिए करो, बाह्य दिखावे के लिए नहीं ढंग का जीवन जियो,साधना के क्षेत्र में ढोंग मत करो।अन्य क्षेत्र में किया गया पाप धर्म क्षेत्र में दूर किया जा सकता है, परंतु धर्म क्षेत्र में किया गया शिथिलाचार,पाप बज्र लेप के समान कठोर होता है। जितनी भाव विशुद्धि होगी,उतना सुख प्राप्त होगा। तपस्या करो, परंतु जगत की चाह मत करो।आचार्य श्री विशुद्धसागरजी गुरुदेव ने धर्मसभा। में यह आशीर्वचन दिए
आचार्य श्री ने कहा कि वह आपके बंधु, हितैषी , मित्र नहीं हैं, जो सिनेमा घर ले जाएं, अपितु सच्चे हितकारी मित्र वह हैं, जो आपको सत्य, संयमऔर आत्म कल्याण के मार्ग परलगाएं। जो पाप क्रियाओं में लिप्त करें, वे आपके प्रतिकूल मित्र हैं और जो पाप से रोके, पुण्य से जोड़ें, वह आपके अनुकूल शत्रु हैं।जो दुःख में साथ दें, कष्टों से उभार लें, संकटों में भी साथ न छोड़े वही सच्चा मित्र है।
देश के सैनिकों के लिए भी दुआ करनी चाहिए आचार्य श्री
आचार्य श्री ने कहा देश के सैनिकों के लिए भी दुआ करना चाहिए
देश के नागरिक घर में शांति का जीवन जीते हैं, उसी समय देश के सिपाही,सैनिक देश की सीमा पर सजगता के साथ खड़े रहते हैं। सच्चा सैनिक अपने प्राण न्योछावर कर देता है, परंतु वह शत्रुओं के समक्ष पीछे नहीं हटता है।सैनिक और साधु एक समान होते हैं सैनिक शत्रुओं से रक्षा करता है, साधु आंतरिक पापों से रक्षा करते हैं। देश की खुशहाली के लिए नागरिकों को देश की सीमा पर खड़े सैनिकों के लिए भी दुआ करना चाहिए।
संतान को संस्कार भी दो
आचार्य श्री ने कहा संतान को जन्म देना चिड़िया भी जानती है संतान को अच्छी संपत्ति के साथ संस्कार देना भी प्रदान करे।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी 9929747312