अगर कभी झुकना पड़े तो वहाँ झुकना जहाँ..सन्त जैसी सरलता, बच्चों जैसी निश्चलता, औरमाँ जैसी निष्कपटता हो ..! प्रसन्न सागर महाराज
आरोल
अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर महाराज ने अपने मंगल प्रवचन में कहा कि अगर कभी झुकना पड़े तो वहाँ झुकना जहाँ..सन्त जैसी सरलता, बच्चों जैसी निश्चलता, और
माँ जैसी निष्कपटता हो ..!*l
अन्यथा धन के आगे, रूप के आगे और अहंकार के आगे झुकने की कोई आवश्यकता नहीं है। क्योंकि अहंकार एक ऐसा दुर्गुण है जिससे अछूता आदमी दुनिया में खोजना ऐसा ही है, जैसे बरसात में पापड़ को सुखाना या तकिया से कील को ठोकना।
उन्होंने कहा आप देखना – छोटे बालक में भी अहंकार का पुट देखा जा सकता है। मृत्यु के कगार पर खड़े वृद्ध व्यक्ति में भी अहंकार की आवाज सुनी जा सकती है। अहंकार को कैंसर की संख्या देते हुए कहा कि अहंकार एक आध्यात्मिक कैंसर है, जो जीवन के सद्गुणों को राख कर देता है।सम्प्रदाय, पन्थ, धर्म के नाम पर हटाग्रह, दुराग्रह, अहंकार के ही तो प्रतीक है। भगवान बनने के मार्ग में अहंकार और ममकार को छोड़ना ही पड़ेगा, आज नहीं तो कल। क्योंकि अहंकार में धर्म और जीवन नहीं होता लेकिन धर्म और जीवित होने का प्रदर्शन जरूर होता है।
अहंकार दु:ख है, पीड़ा है, अहंकार जीवन की हर सफलता में बाधक है।
एक लोकोक्ति के माध्यम से महाराज श्री ने कहा किछः दिन दौड़ता है आदमी इतवार के लिये..
महिना भर दौड़ता है आदमी तनख्वाह के लिये..साल भर दौड़ता है आदमी अधूरे ख्वाब के लिये..और पुरी ज़िन्दगी दौड़ता है आदमी एक मुट्ठी राख होने के लिये…!!!। नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद से प्राप्त जानकारी
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी 9929747312