परम प्रभु की शाश्वत शरण को छोड़कर हीरे की जगह कांच के टुकड़ों की ओर क्यों जा रहे हो? विज्ञानमति माताजी का वीरोदय तीर्थ पर हुआ मंगल प्रवेश

धर्म

परम प्रभु की शाश्वत शरण को छोड़कर हीरे की जगह कांच के टुकड़ों की ओर क्यों जा रहे हो? विज्ञानमति माताजी का वीरोदय तीर्थ पर हुआ मंगल प्रवेश
बांसवाड़ा
आचार्य श्री 108 विवेक सागर जी महाराज की परम शिष्या आर्यिका 105 विज्ञान मति माताजी संघ का सोमवार को वीरोदय तीर्थ पर मंगल प्रवेश हुआ। जहां क्षेत्र कमेटी एवम एवीएस परिवार के सदस्यों ने मंगल आगवानी की। नितिन भैया एम रोहित भैया के निर्देशन में श्री जी का अभिषेक एवं शांति धारा संपन्न हुई।

 

पूज्य माताजी ने अपने मंगल प्रवचन में कहा की मंदिर को छोड़कर घर क्यों लौट जाते हो? कौन बुलाता है तुम्हें? किसी की आवाज तो सुनाई नहीं देती, फिर भी किसके लिए चले जाते हो? कौन है यहां तुम्हारा? यहां अपना सा प्रभु परमात्मा है।

क्षीरसागर को छोड़कर क्षारसमुद्र की और क्यों जा रहे हो? अविनश्वर परम प्रभु की शाश्वत प्रभु की शरण को छोड़कर हीरे की जगह कांच के टुकड़ों की ओर क्यों जा रहे हो?

 

 

माताजी ने कहा अनंतो बार प्रभु की चरण को छोड़कर लौट आए, क्योंकि जिनराज से अधिक आकर्षण मोहराज का रहा। जैसे कोई रत्नदीप को छोड़कर कोयले की खदान में चला जाए, फूलों की बगिया को छोड़कर कांटो के बीच आ जाए, आसमान की ऊंचाइयों को छोड़कर खंदाको में गिर जाए, मधुबन को छोड़कर बियावान वन में चला जाए,

 

परम पावन को छोड़कर पामरो के निकट आ जाए, अमृत कुंड को छोड़कर विष कुंड की ओर चला जाए, इसका कारण मोह है। मोह ही दुख का कारण है। मोह से आवृत्त ज्ञान का स्वरूप नहीं दिखता।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी 9929747312

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