यदि मनुष्य सुख के दिनों में भी धर्म ध्यान करता रहे तो उसे दुख का सामना नहीं करना पड़ेगा मुनि श्री सुधा सागर महाराज अतिशय क्षेत्र चांदखेड़ी के आदिनाथ भगवान की प्रतिमा सबसे अधिक शगुनकारी प्रतीत होती है मुनिश्री

धर्म

यदि मनुष्य सुख के दिनों में भी धर्म ध्यान करता रहे तो उसे दुख का सामना नहीं करना पड़ेगा मुनि श्री सुधा सागर महाराज अतिशय क्षेत्र चांदखेड़ी के आदिनाथ भगवान की प्रतिमा सबसे अधिक शगुनकारी प्रतीत होती है मुनिश्री

दमोह

मनुष्य सुख के दिनों में धर्म और धर्मात्माओं से दूर होता जाता है दुख के दिनों में वह उनके निकट आता है यदि वह सुख के दिनों में भी धर्म ध्यान करता रहे तो उसे दुख का सामना नहीं करना पड़ेगा।

 

 

सुख साधन और अधिकार मिलने पर व्यक्ति धर्म से दूर होता जाता है यदि अधिकारी बनकर धर्म से दूर हो गए तो एक धर्मात्मा बनकर छोटे पद पर रहना ज्यादा बेहतर है जितना बड़ा अधिकारी उसे उतना ही धर्म ध्यान करना चाहिए धर्म से कभी विमुख नहीं होना चाहिए यदि बेटे को तिजोरी की चाबी देने पर वह नाली में

 

मिले तो ऐसी चाबी देना बेकार है अधिकार दिए जाने पर व्यक्ति धर्म से दूर हो जावे तो उसे अधिकारी बनना बेकार है दुखी भले रहो किंतु धर्मात्मा बने रहो अपने अच्छे दिनों को व्यक्ति को तीर्थ पर अथवा गुरुओं के पास गुजरानाचाहिए ना कि बड़े-बड़े होट

 

 

 

 

 

लों में अथवा पर्यटन स्थल पर व्यर्थ में घूमना फिरना चाहिए।

 

 

मनुष्य को अपने अच्छे दिनों में अच्छे स्थानों पर होना चाहिए पाप के स्थान पर नहीं धर्म स्थान पर होना चाहिए
उपरोक्त विचार निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज ने दिगंबर जैन धर्मशाला में चल रहे श्रमण संस्कृति संस्कार शिक्षण शिविर में भक्तांबर की क्लास में अभिव्यक्त किये। इस मौके पर मुनि श्री को शास्त्र भेंट करने का सौभाग्य अरविंद इटोरिया परिवार एवं पद प्रक्षालन का सौभाग्य प्रवीण जैन महावीर ट्रांसपोर्ट परिवार को प्राप्त हुआ।

 

मुनि श्री ने अपने मंगल प्रवचनों में आगे कहा कि शगुन उसको बनाओ जो तुम्हारा उपकारी हो तीर्थंकर हमारे लिए शरण है वे ही हमारे लिए शगुन है क्योंकि तीर्थंकरों ने स्वयं के कल्याण के साथ-साथ संसार के कल्याण की भावना भाई उनकी यह जगत कल्याण की भावना ही उन्हें तीर्थंकर बनाती है जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर चांदखेड़ी वाले आदिनाथ भगवान की प्रतिमा सबसे अधिक शगुनकारी प्रतीत होती है इसी तरह संतों में हमारे गुरुदेव आचार्य श्री की मुस्कान भरी छवि शगुनकारी थी उनकी मुद्रा मंगलकारी थी संतों का सौम्य मुस्कुराता चेहरा दिखे तो मंगल मंगल है भक्तांबर का एक-एक श्लोक जीवंत है भगवान कै रक्षक देव सम्यक दृष्टि होते हैं वे अपनी नहीं भगवान की पूजा से प्रसन्न होते हैं।

सुनील जैन वेजीटेरियन से प्राप्त जानकारी के साथ अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी की रिपोर्ट

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