*अन्तर्मना उवाच* (15 मई!)

धर्म

*अन्तर्मना उवाच* (15 मई!)

*सम्मान के लिए संघर्ष करें,*
*परन्तु अधर्म का साथ ना दें..*
*अधिकार के लिए जरूर लडें,*
*परन्तु जिस पर अधिकार नहीं..*
*उसका मोह ना करें..!*

 

 

 

 

 

क्योंकि *संसार में कोई किसी का नहीं है। सब अपने अपने स्वार्थ को लेकर तुमसे प्यार करते हैं।* संसार तभी तक मीठा लगता है, जब तक *पत्नी* गरम गरम भोजन परोसती है, और पति की हाँ में हाँ करती है।

 

 

 

👉 *पुत्र* तब तक अच्छा लगता है जब तक आपकी आज्ञा में होता है।
👉 *बेटी* भी तभी तक अच्छी लगती है जब तक घर परिवार की इज्जत-सम्मान बना के रखती है।

*जब बेटा बुरी संगति में पड़ जाये और बेटी दूसरे के प्रेम, प्यार में पड़ जाये,, तो यही संसार कड़वा लगने लगता है।* इस बात को हमेशा ध्यान में रखना — *जो भी मिला है, वह सदा के लिए नहीं मिला।* इसलिए उपलब्धियों पर अक्कड़ करना व्यर्थ है। जिस घर में *कलह* और *ईर्ष्या* नहीं होती , *क्लेश* और *संक्लेश* नहीं होता,, वहाँ *लक्ष्मी* का वास होता है।

*छोटी सी जिंदगी में ईर्ष्या और द्वेष से बचना..*
*यही दुःखों का कारण है…!!!* नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद से प्राप्त जानकारी अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमडी 9929747312 

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