हम किसी भी द्रव्य आदिको अपना मान लेते हैं और उसी में अपना अधिकार समझते हैं यही दुख का कारण है। आचार्य श्री विद्यासागर महाराज
डोंगरगढ़
विश्व वंदनीय आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने गुरुवार की बेला में अपने प्रवचन में अधिक परिग्रह को दुख का कारण बताया
उन्होने उदाहरण के माध्यम से बताया कि एक दुकान है जिसमें बहुत से कर्मचारी कार्य करते हैं और उनका एक सेठ भी है,सभी कर्मचारी समय सेआते-जाते समय से करते,समय खाते और समय से सोते हैं। सभी सुकून से अपना जीवन यापन कर रहे हैं।
परन्तु सेठ को सोने के लिए नींद की गोली खानी पड़ती है, ना दिन को चैन है ना रात को आराम है। शरीर भी त्राश खा रहा है, ऐसे में एक व्यक्ति उनको कहता है कि तुमअपना कारोबार अपने किसीविश्वसनीय मुनीम को दे दो जिससेतुम्हें कुछ आराम मिल जाएगा, तोवह सेठ कहता है कि ऐसे में तो परेशानी और बढ़ जाएगी। लोग कहने लगेंगे कि सेठ ने दुकानउसके नाम कर दी और साराकारोबार अब उसका हो गया है। मेरेनाम से ही तो दुकान पूरे शहर मेंबजती है फिर मेरा क्या होगा। लोग तो उसी का नाम लेने लग जाएंगे।यदि आपको खून की कमी हो रही हो तो हमारे पास उसे बढ़ाने काउपाय है। आचार्य कुंदकुंद स्वामी ने
शास्त्रों के माध्यम से बताया है किहम खाली हाथ आए थे और खालीहाथ ही जाएंगे, अधिक परिग्रह दुःखका कारण होता है और उमसे मूर्छाहोना आपको दुखी बनाए रखता है।यदि आप अपना सब कुछ धन,दौलत, मकान, दुकान, गाड़ियांआदि अपने नाम से हटाकर लिखितमें दूसरे के नाम कर दोगे तोनिश्चित ही आपका खून बढ़नेलगेगा और नींद भी अच्छी आने लगेगी। हम किसी भी द्रव्य आदिको अपना मान लेते हैं और उसी मेंअपना अधिकार समझते हैं यहीदुख का कारण है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी