युग श्रेष्ठ संत शिरोमणि आचार्य प्रवर श्री विद्यासागरजी महाराज

आचार्य श्री विद्यासाग़र महाराज

युग श्रेष्ठ संत शिरोमणि आचार्य प्रवर श्री विद्यासागरजी महाराज
विजय धुर्रा अशोक नगर

भारतीय वसुंधरा पर युगों युगों से महापुरुष होते आए हैं और यह गौरव सारी इतिहास हमें हमेशा गौरवान्वित करता है जब हम किसी महा मना की जीवन झांकी की झांकते हैं ऐसे ही इस युग के महामना के लिए मैं ये कहूं कि इस युग का सौभाग्य है कि इस युग में संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जन्मे और हम सब का सौभाग्य है कि हम उनके युग में पैदा हुए श्रमण संस्कृति जिनकी आभा से दीपती मान है ऐसे युग श्रेष्ठ संत शिरोमणि आचार्य प्रवर श्री विद्यासागरजी महाराज ने आज के दिन ही कर्नाटक के सदलागा ग्राम में मां श्री मंती की कोख से मंलप्पाजी के घर जन्म लिया वालकाल में ही वैराग्य को धारण कर उत्तर भारत के महान संस्कृतज्ञ आचार्य ज्ञानसागरजी महाराज से 30 जून 1968में अजमेर में मुनि दीक्षा ली। उन्हें आचार्य पद आचार्य ज्ञानसागरजी ने 22 नवम्बर, 1972 में दिया। चरित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर महाराज के उपदेशामृत ने बचपन में विरक्ति के बीज बोए और आजीवन ब्रह्मचर्यव्रत आचार्यश्री देशभूषणजी महाराज से ग्रहण किया। आचार्य श्री ज्ञानसागर महाराज से शिक्षा और दीक्षा प्राप्त की।

 

 

*साहित्य जगत को किया समृद्ध*
आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज को जहां प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत, मराठी, हिन्दी, कन्नड़ तथा अंग्रेजी आदि अनेक भाषाओं में प्रकाण्ड पाण्डित्य प्राप्त है, वहीं दर्शन, इतिहास, संस्कृति व्याकरण, साहित्य मनोविज्ञान और योग आदि विधाओं में भी अनुपम वैदुष्य उपलब्ध है। आप में आशु-कवित्व तथापि प्रायुत्पन्न अत्यंत प्रशष्य गुण है। आपने भव्य जीवों के आत्मकल्याण हेतु अनेक ग्रन्थों का प्रणयन किया है। आपके द्वारा लिखिक मूक माटी (महाकाव्य) आज देशभर में विद्वत्समाज और साहित्यकारों के बीच बहुचर्चित है। इसके अतिरिक्त चेतना के गहराव में (सचित्र प्रतिनिधि काव्य संकलन) तथा नर्मदा का नरम कंकर, डूबो मत/लगाओ डुबकी, तोता क्यों रोता ? काव्य संग्रह भी हैं। संस्कृत में श्रमणशकतकम्, निरंजनशकतम्, भावनाशंकतम्, परीषहजयशतकम् और सुनीतिशकतम् और शारदा-स्तुति सृजित की है एवं इन्हीं पांच शतकों का हिन्दी पद्यानुवाद तथा राष्ट्रभाषा में निजानुभवशतक, मुक्तकशतक, स्तुतिशतक, सर्वोदयशतक तथा पूर्णादयाशतक मौलिक रचित है। इनके अतिरिक्त आपने समयसार, प्रवचनसार, नियमसार, द्वादशानुप्रेक्षा, पंचास्तिकाय, अष्टापाहुड, रत्नकरण्डक, श्रावकचार, समणसुत, देवागम-स्त्रोत, स्वयंभूस्त्रोत, इष्टोपदेश, समाधितंत्र., नंदीश्वरभक्ति, द्रव्यसंग्रह, समयसार-कलश तथा गोमटेश-शुद्धि आदि का सरल एवं सुबोध पद्यानुवाद भी किया है। लगभग 25 प्रवचन संग्रहों के अतिरिक्त अनेक स्फुट काव्य संस्कृत, हिन्दी, प्राकृत, अंग्रेजी तथा कन्नड़ आदि भाषाओं में लिखे हैं। आपके द्वारा अभी तक लगभग 350 से अधिक मुनि-आर्यिका, ऐलक एवं क्षुल्लक साधुजन दीक्षित हैं। आपके ही सान्निध्य में 20वीं शताब्दी में जहां षट्खण्डागम तथा कषायपाहुड़ ग्रन्थ की वाचना प्रारम्भ हुई, वहीं आत्मकल्याण के इच्छुक लगभग 22 साधु/साधकों ने आपके निर्यापकत्व में आगामानुसार रीति में सल्लेखनापूर्वक समाधिमरण को प्राप्त किया। आचार्यश्री न केवल तपस्वी हैं, बल्कि दार्शनिक एवं समाज सुधारक भी हैं। शिक्षा, स्त्री शिक्षा, पशु कल्याण तथा पर्यावरण के क्षेत्र में उनकी प्रेरणा से कितनी ही परियोजनाएं चल रही हैं। ”जबलपुर (मध्यप्रदेश) स्थित प्रतिभास्थली स्त्री शिक्षा का एक अग्रणी संस्थान है या यूं कहें एवं आन्दोलन है। ज्ञातव्य हो ”ज्ञानपीठ पुरस्कार संज्ञक भारतीय साहित्य का श्रेष्ठ पुरस्कार प्रदाता भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली द्वारा ”मूकमाटी महाकाव्य का हिन्दी व उसके मराठी, बंगला, कन्नड़ अनुवादों के प्रकाशन उपरान्त अंग्रेजी भाषा में अनुवादित ”मूकमाटी कृति द सायलेंट अर्थ का भी प्रकाशन किया गया है।
*देश के लिए किए गये उनके उपकार*

 

 

 

 

आचार्य श्री विद्यासागर जी महा मुनि राज एक ऐसे महा मनीषी है जो आध्यात्म के साथ कठोर साधक होते हुए भी अंतिम पंक्ति के व्यक्ति के वारे में सोचते हैं यही कारण है उन्होंने गरीबों को अहिंसक रोजगार देने के लिए हस्तकरघा की प्रेरणा दी आज देश केन्द्रीय जेल सहित देश की अनेक जेलो मे हथ करघा के माध्यम से रोजगार दिया जा रहा है वहीं दूसरी ओर सर्व साधारण को शुद्ध अहिंसक वस्त्रो की प्राप्ति हो रहीं हैं दयोदय गौशालाओं के द्वारा लाखों गायों को जीवन मिल रहा है आचार्य श्री की दृष्टि राष्ट्रीय एकता की ओर गई तो उन्होंने भाषा पर जोर दिया हर कार्य राष्ट्रभाषा हिन्दी में होगा तो देश की एकता को वर मिलेगा नारी गौरव बाड़ने के लिए वेटियो को संस्कारित शिक्षा की आवश्यकता को महसूस करते हुए प्रतिभा स्थली के रूप में संस्कारित शिक्षा के लिए देश के अनेक भागों में आपकी प्रेरणा से प्रतिभा स्थलीयो में ब्रति बहनों द्वारा शिक्षा दी जा रही है चिकित्सा क्षेत्र में देश की प्राचीन आयुर्वेद चिकित्सा को प्रोत्साहन देते हुए पुण्य आयु चिकित्सा संस्थान जहां विद्यार्थी सोध कर चिकित्सा जगत को कुछ दे की तैयारी कर रहे हैं वहीं एक हजार विस्तार के विशाल चिकित्सालय का निर्माण संस्कारधानी जबलपुर में किया जा रहा है आचार्य श्री ने संस्कृति और संस्कारों द्वारा के लिए देश के लिए जो मार्ग दर्शन दिया है वह आगामी पीढ़ियों के लिए मील का पत्थर होगा जो आज उनके अवतार दिवस पर हम सब यही भावना करते हैं कि वे
हमेशा जगत का मार्ग दर्शन करते रहे संतायू हों चिराइयू हो उनके पावन चरणों में शत शत नमन।
लेखन — *विजय धुर्रा अशोक नगर संयोजक मध्यप्रदेश महासभा*

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