संस्कृति रक्षा के लिए निस्वार्थ सेवा व पुराने संस्कार जरूरी हैं : निर्भय सागर

धर्म

संस्कृति रक्षा के लिए निस्वार्थ सेवा व पुराने संस्कार जरूरी हैं : निर्भय सागर

सागर
तपोवन तीर्थ में चातुर्मास औरपंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव संपन्न
कराने के बाद आचार्य निर्भय सागर महाराज का मंगल विहार कर्रापुर के लिए हुआ।

 

शुक्रवार को सुबह 7 बजे अपनी जन्मस्थली धवौली में मंगल प्रवेश होगा। धवौली में शांति विधान, शिखर शुद्धिऔर वेदी शुद्धि के आयोजन होंगे। यहां स्थित जैन मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है ,

               

कर्रापुर में धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्य श्री नेकहा कि सभी प्राणियों में ज्ञान, दर्शनऔर शक्ति जैसे गुण समान होते हैं।
इसलिए सभी को समान समझना चाहिए। सोच दूर की रखो, दृष्टि चार हाथ की रखो, मंजिल जरूर मिलेगी।

       

निस्वार्थ सेवा ही सच्चा कार्य है।संस्कृति की रक्षा के लिए पुराने संस्कार और देश की रक्षा के लिए नई सोच जरूरी है। वचनों से आत्मा का बल घटता और बढ़ता है। दिल में श्रद्धा और दिमाग में दर्द होना चाहिए। जब दिल में तर्क उठते हैं, तब भावनाएं आहत होती है।

       
 घड़ी और जीवन चलते हुए अच्छे लगते है,रुकने पर नहीं। मधुर वाणी से हर प्राणी से मधुर संबंध बनते हैं आदर,सत्कार, क्षमा,और विनय ज्ञानियों की सबसे बड़ी  देन हैं। अच्छे रिश्तों से फरिश्ते भी  प्रसन्न होते हैं।

 

   उन्होंने कहा अहम् को दफन करने वालों की अहमियत बढ़ती है, अहम् करने से हैसियत घटती है। निस्वार्थ भलाई दूध की मलाई की तरह  ऊपर आती है। अच्छे लोगों का साथ बुरे लोग चाहते हैं।

 

 उन्होंने कहा विश्वास ही विश्व की श्वास है। झूठे लोगों के रिश्ते रूठे और टूटे नहीं रहते। आशा निराशा दोनों दुखदाई हैं। समय पर मिली  वस्तु का मूल्य बढ़ जाता है।

         संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी 9929747312

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *