राजमल जी लुहाड़िया एक नाम, जो रामगंजमंडी जैन समाज की शान हुआ करता था,

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राजमल जी लुहाड़िया एक नाम, जो रामगंजमंडी जैन समाज की शान हुआ करता था,

राजमल जी लुहाड़िया एक नाम, जो रामगंजमंडी जैन समाज की शान हुआ करता था, वरन आज भी हुआ करता है । शरीर का कद भले उनका छोटा था, पर व्यक्तित्व का कद काफी ऊंचा था । “वन मैन आर्मी” थे वो अपने आप में, जो ठान लेते थे उसे करके ही छोड़ते थे ।

 

 

उनके अध्यक्ष काल में रामगंजमंडी में अभूतपूर्व कार्यक्रम एवं भव्यातिभव चातुर्मास सानंद संपन्न हुए । स्वाध्याय में उनकी रुचि थी जो पढ़ने तक ही सीमित नहीं थी, उसे आचरण में भी उतारते थे । अंतिम समय याद आता है उनका । हम समाधि भावना में पढ़ते हैं “धर्मात्मा निकट हो, चर्चा धर्म सुनावे”, पर इसका उलट करते हैं । किसी भी बीमार वृद्ध से मिलने जाते तो वहां पर धर्म चर्चा की बजाए इधर उधर की बाते करते हैं । वहीं काका साहब राजमल जी अंतिम समय में कोई मिलने जाता था और पूछता था “पहचाने?” तो वो उत्तर न देकर “अरिहंत – सिद्ध” करने लगते थे । जब उनका देहावसान हुआ, उस समय हम आर्यिका सम्मेदशिखर जी माताजी के पास बैठ कर राजमल जी काका साहब के स्वास्थ्य की ही चर्चा कर रहे थे । ये भी संयोग था की माताजी ने भी उसी समय पूछा स्वास्थ्य के बारे में, शायद उन्हें अहसास हो गया होगा ।
आज फिर से वही दिन है । उनकी पुण्य तिथि पर शत शत नमन ।
सिद्धार्थ बाबरिया

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