*युद्ध की आहट से विश्व सहम रहा है* संजय जैन बड़जात्या
युद्ध की आहट संपूर्ण विश्व को सहमा रही है पहले यूक्रेन जला तो रुस भी बहुत पीछे चला गया। उसके बाद जब गाजा पट्टी में हमास और इजरायल उलझे तो मानवता और विकास दोनों का बहुत बड़ा ह्रास हुआ। वर्तमान में ईरान और इजरायल के उलझने की संभावनाएं बड़ी तीव्रता के साथ बढ़ती जा रही हैं। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि जैसे ऊपर वाले ने इस इंसान को बना कर बहुत बड़ी भूल की हो।
आदिकाल से मानव लड़ता झगड़ता चला आ रहा है पहले यह पत्थरों से लड़ता था फिर धीरे-धीरे हथियारों तलवार, भाले आदि का विकास होने लगा, हथियारों के विकास ने जब उन्नति की गति पकड़ी तो बंदूक,तोप-गोले आदि का विकास होता चला गया। अब तो उससे भी कुछ आगे बढ़कर मिसाइल के साथ युद्ध हो रहा है।
जो की संपूर्ण मानवता के लिए बहुत ही घातक है। विकास के चरम पर पहुंचने के बाद युद्ध लड़ने की शैली में भी परिवर्तन हुआ है। मिसाइल के साथ-साथ जैविक युद्ध और उससे भी ऊंचा परमाणु युद्ध की संभावनाएं अति प्रबलता के साथ आगे बढ़ रही हैं।
किसी भी धर्म ग्रंथ में यह नहीं कहा गया की आप हिंसा का मार्ग अपनाओ, युद्ध की ओर अग्रसर हो,एक दूसरे का संहार करो, तो फिर मानव में इन गुणों का विकास क्यों हुआ? क्यों मानव एक दूसरे के खून का प्यासा नजर आता है? क्यों एक दूसरे पर राज करने की परिणति का विकास हो रहा है?
खैर प्रश्न विचारणीय है किंतु जवाब शायद शून्य है। इस शून्यता में भी यदि थोड़ा सा भी मंथन करें तो यह बात जरूर जहन में आएगी क्या युद्ध से कभी किसी का भला हुआ है? क्या युद्ध से विकास संभव हुआ है? क्या युद्ध के दौरान किसी भी देश ने उन्नति की है? युद्ध हमेशा विनाश करता है और भविष्य के लिए दुखों का सागर छोड़ जाता है। एक ऐसी पीड़ा पीछे रह जाती है जिसे आने वाली पीढियों को भी भुगतना पड़ता है खैर ऊपर वाला सद्बुद्धि प्रदान करें विश्व शांति की ओर अग्रसर हो यही हमारी भावना है।
संजय जैन बड़जात्या कामां आलेखित लेख
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी 9929747312