मौन से अपने आप ताक़त बढ़ती हैआचार्य प्रसन्नसागर
नागपुर.
नसीहत वह सच्चाई है जिसे हम गौर से नहीं सुनते,और तारीफ वो धोखा है जिसे हम हर वक्त सुनना पसंद करते हैं..!इसलिए धैर्य से काम लें, किसी भी बात का जल्दी जबाव न दें। *यदि आपको कोई उत्तेजित करता है, तो आप जल्दी उत्तेजित ना हो, ना जल्दी जवाब दें।* जवाब देने या लिखकर भेजने से पहले कुछ समय शान्त हो जायें। ध्यान रखें–
अपनी मंगल वाणी में अंतरमना आचार्य श्री 108 प्रसंग सागर महाराज ने कहा कि इंटरनेट के इस दौर में आप ऐसा कुछ भी लिखकर ना छोड़ें जो बाद में आपकी परेशानी बन जाये। किसी भी बात की जल्दी प्रतिक्रिया ना दें। किसी अपने अच्छे निष्पक्ष दोस्त से सलाह लेकर फिर प्रतिक्रिया दें। कोई आपके लिये कुछ अच्छा या बुरा बोल रहा है तो चिन्तन और मन्थन करें।ध्यान रखें — जब आप सफलताओं के शिखर पर पहुँचने लगते हैं, तो आपके अपने ही कुछ लोग असहज हो जाते हैं और आलोचना करना शुरू कर देते हैं।
आज के इस दौर में आलोचना ही सफलता की निशानी है। जो हम देंगे वापिस वही हमें मिलेगा। सबके अन्दर एक ताकत होती है सहन करने की और ना सहन करने की। मछली जंगल में दौड़ नहीं सकती और शेर पानी का राजा नहीं बन सकता। सबमें अपनी खूबी तो किसी में खामियां होती है। एक समय था जब लोगों को जादू पर भी यकीन हो जाता था। आज लोगों को हकीकत पर भी यकीन नहीं होता।सोचो कभी ऐसा हो तो क्या हो…!!!
आचार्य प्रसन्नसागर ने कहा कि, मौन रखने से ताकत अपने- आप बढ़ती है। बोलने वाला किसी की वाणी को आत्मसात नहीं कर सकता। एक साथ सुनना और बोलन संभव नहीं है, इसलिए मुनिश्री आहार के समय मौन रहते हैं। मौन रहने पर भगवान रू-ब-रू हो जाते हैं। भगवान के दरबार में भोले बनकर जाओगे, तो दर्शन प्राप्त होगा। पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर सदर में आचार्य ने प्रवचन में यह उद्बोधन किया।
जैसा करोगे, वैसा फल मिलेगा
संघस्थ सहजसागर महाराज ने कहा कि, आज तक नवधा भक्ति बताया करते थे। वे खुद ही नवधाभक्तिओमकार में एनर्जी : आचार्य ने कहा- पूरी एनर्जी ओमकार में है।ओमकार में पांचों परमेष्ठी समाहित है। तीर्थंकर के जन्म और केवल ज्ञान कल्याणक के समय तीनों लोक उर्ध्व, मध्य और अधो लोक में थोड़ी देर के लिए शांति मिलती है। योगी नित्य ध्यान करते हैं। सुबह उठते ही जुबान तालू से लगाकर ओमकार ध्वनि निकालो। उसके साथ जो काम है, उसका उच्चारण करो। वह काम सिद्ध हो जाएगा। पानी गन्ने के खेत में गया, तो मीठा, नीम के पेड़ में गया, तो कड़वा और शिप में गया, तो मोती बन जाता है। भगवान के अभिषेक में गया, तो गंधोदक बन जाता है। वैसे ही वाणी का जैसा उपयोग करोगे, वैसे ही उसका फल मिलेगा। कभी निगेटिव सोच मत रखना। भगवान के स्थान पर भगवान्न, संत निवास में संत, जीनवाणी के स्थान पर जीनवाणी ही होती है। सभी तीर्थकर क्षेत्रीय और गणधर ब्राह्मण थे। जैन धर्म सर्वव्यापी है।महाव्रती बन गए। जिनेंद्र देव के भक्ति से सम्यग्दर्शन, आगम के भक्ति से सम्यग्ज्ञान और गुरु की भक्ति से सम्यग्चरित्र प्राप्त होता है। जैसा करोगे, वैसा फल मिलेगा। मायाचारी करने से तिर्यच गति में जाना पड़ता है।संतों के आशीर्वाद से ही भारत में सब व्यवस्थित चल रहा है। इस अवसर पर सेनगण मंदिर के अध्यक्ष सतीश पेंढारी, महामंत्री पंकज बोहरा उपस्थित थे।
पांचवां आचार्य पदारोहण आज
29 नवंबर में अंतर्मना गुरुदेव का पांचवां आचार्य पदारोहण दिवस धूमधाम से मनाया जाएगा। सुबह 8 बजे मानस्तंभ का भूमिपूजन होगा। नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद से प्राप्त जानकारी संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी 9929747312