धन कम है, इस बात का दु:ख है..या पड़ोसी के पास ज्यादा है,इस बात का दु:ख ज्यादा है-?अन्तर्मना आचार्य प्रसन्न सागरजी महाराज

धर्म

धन कम है, इस बात का दु:ख है..या पड़ोसी के पास ज्यादा है,इस बात का दु:ख ज्यादा है-?अन्तर्मना आचार्य प्रसन्न सागरजी महाराज
कुलचाराम हैदराबाद
अन्तर्मना आचार्य प्रसन्न सागरजी महाराज ने अपने मंगल प्रवचन में कहा किधन कम है, इस बात का दु:ख है..या पड़ोसी के पास ज्यादा है,इस बात का दु:ख ज्यादा है-?*
आज हमारे जीवन के समीकरण अर्थ, अहंकार और आकांक्षा में समा गये। यही सबसे बड़े दुःख के कारण है।

 

 

महाराज श्री ने धनतेरस के विषय में कहा कि धन तेरस से दीपोत्सव शुरू हो जाता है। यह पर्व सबके लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस पर्व में साफ सफाई और अर्थ की कमाई हमारी प्रसन्नता और सुख में कारण बन जाती है।
माना कि अर्थ के बिना संसारिक जीवन व्यर्थ है और धर्माचरण के बिना धर्म का जीवन भी व्यर्थ है। अर्थ के द्वारा धर्म और मोक्ष का मार्ग सरल-सहज होता है। अर्थ को सिर्फ काम वासनात्मक तरीके से उपयोग करना ठीक नहीं है, क्योंकि यह साधना में भी सहयोगी है। उद्देश्य और लक्ष्य दोनों के अलग अलग है।

महाराज श्री ने बताया कि अर्थोपार्जन का उद्देश्य – सेवा, दान, परोपकार, प्रभावना और सहृदयता के साथ सहायता करना। निर्धन और धनवान के लिये यह पर्व बराबर मायने रखता है।

सभी के लिये खुशी, आनंद, प्रेम- प्रसन्नता और उत्साह बराबर है। धन पर एकाधिकार जमाकर जीना, जीवन भर हाय हाय करके जोड़ना और एक पल में सब यूं ही छोड़कर मर जाना – ये अच्छा है या अपने हाथों से सेवा, दान, परोपकार, प्रभावना – अस्पताल, स्कूल में लगाकर जाना चाहिए-?
एक लोकोक्ति बताते हुए कहा कि
देकर जाओगे जीवन भर याद किये जाओगे,
छोड़ कर जाओगे तो अपनों की गालीयां सुनोगे।*क्या करके मरना है -? देकर या छोड़कर-???।

नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद से प्राप्त जानकारी
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी 9929747312

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