धनतेरस को जैन आगम में धन्य तेरस या ध्यान तेरस भी कहते हैं । अतिशय जैन शास्त्री छबड़ा
भगवान महावीर को तेरस के दिन संपूर्ण ज्ञान की प्राप्ति हुई थी तब लोगो ने उस तिथि को ‘धन्य’ माना और कहा – ‘धन्य है वो तेरस जिस भगवान को संपूर्ण ज्ञान प्राप्त हुआ’।
भगवान महावीर इस दिन तीसरे और चौथे ध्यान में जाने के लिये योग निरोध के लिये चले गये थे।
श्रमण संस्कृत संस्थान सांगानेर संस्थान में अध्यनरत छबड़ा के अतिशय जैन शास्त्री इसकी जानकारी देते हुए बताते हैं कि श्रमण भगवान महावीर स्वामी तीन दिन के ध्यान के बाद योग निरोध करते हुये दीपावली के दिन निर्वाण को प्राप्त हुये । तभी से यह दिन धन्य तेरस के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
वह आज की वर्तमान स्थिति और वर्तमान परिपेक्ष के विषय में बताते हैं कि हमने इस पर्व को धन से जोड़ दिया है । योग निरोध का दिन धन्य तेरस भी धन तेरस बन गया है । धन की प्रभुता के शिकंजे में फ़ँसे हमारे लिए ज्ञानलक्ष्मी और मोक्षलक्ष्मी का यह पर्व भी धन की देवी समझे जानी वाली लक्ष्मी पूजा का पर्व बन गया है ।
वीतरागी पर्व वीतराग का संदेशवाहक बन गया है । अब हमें धन चाहिए श्वेत हो या श्याम, स्वच्छ हो अस्वच्छ, इस धारणा ने धर्म और जीवन को खण्ड – खण्ड कर दिया है । इस तृष्णा की आँधी में सभी लिप्त है । हमने अपने जीवन में धर्म का प्रकाश नहीं धन का अन्धकार भर लिया है । मृण्मय दीपों के इस संसार में इस दुर्लभ नर तन रत्नदीप की गुणवत्ता और महत्ता को विस्मृत कर दिया है ।
यह पर्व हमारे चिन्तन का पर्व है नर जन्म दुर्लभ मनुष पर्याय को सार्थक करने का पर्व है । भगवान् महावीर के आदर्शों और जैन धर्म की आचार संहिता और दर्शन को समझने का पर्व है । हम प्रकाश करें, घरो को सजायें साथ ही स्वयं भी संयम और सद्गुणों का भी कम से कम एक दीप अपने अन्तर में रखें तभी दीप पर्व की सार्थकता है ।
उनका कहना है कि यदि सचमुच ऐसा कर सके तो हमारे सामने शाश्वत उपलब्धियों का एक ऐसा कोष होगा जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते ।
अतिशय जैन शास्त्री छबड़ा से प्राप्त आलेख
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी 9929747312