असहनीय वेदना सहते हुवे विमल चंद जैन पाटनी की निर्मल परिणामों के साथ चल रही उपवास और व्रतो की साधना उत्कृष्ट उदाहरण
कोटा
आरके पुरम निवासी विमल चंद्र जैन पाटनी दिनांक 16 अगस्त 2022 को ब्रेन पेरे लाईसीस बीमारी से ग्रसित हो गए थे।तभी से वे पूर्णतः बेड रेस्ट पर है उनका दाहिना हाथ और दाहिना पैर बिल्कुल भी काम नहीं करता। उनको बेड पर ही सबकुछ करवाना पड़ता हैं। ।
लेकिन यह बात बहुत ही आश्चर्य कर देने वाली है कि अभी दसलक्षण महापर्व के परम पुनीत पावन अवसर पर विमल चंद जैन निर्मल परिणामों के साथ उपवास और व्रतो की साधना कर रहे हैं। यह महान आश्चर्य करनेवाली है। लेकिन यथार्थ रूप में सत्य है। उनके सुपुत्र पारस जैन पार्श्वमणि पत्रकार विगत 35 वर्षो से जैन पत्रकारिता में उल्लखनीय योगदान देते आ रहे है उनको जैन युवा पत्रकार गौरव, सर्वश्रेष्ठ संवाद दाता अवार्ड और जैन समाज की अनमोल मणि की उपाधि सहित लगभग विभिन्न धार्मिक 700 से अधिक मंचो से पर विशेष प्रिंट मीडिया कवरेज करने पर भाव भरा अभिनंदन कर सम्मानित किया जा चुका है । विगत 35 वर्षो की विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों की कवरेज फाइल भी अनेक पास हैं ।पार्श्वमणि और उनकी धर्मनिष्ठ सद संस्कारों से युक्त धर्मपत्नी सारिका जैन (सुयोग्य सुपुत्री कैलाश चंद जैन श्रीमति कोशल्या जैन बारां ) अपने ससुर श्री विमल चंद ज जैन की रात दिन सेवा में रत रहती है।
उनको प्रातः काल महामंत्र णमोकार, भजन, मेरी भावना, बारह भावना, भक्तामर स्तोत्र, विनय पाठ, तत्वार्थ सूत्र इत्यादि पाठ सुने जाते हैं उसके बाद उनको नहलाना आदि करना फिर भोजन करना इत्यादि क्रम प्रतिदिन चलता है।इन समस्त कार्यों में दिन की दो बज जाती है । सारिका जैन उसके बाद भोजन करती है। अपने आप में सेवा का एक परम कर्तव्य जो पुत्र का पिता के प्रति होता है वह यह परिवार कर रहा है जो अपने आप में एक आदर्श स्थापित करता है।
इनको अभी तक परम पूज्य आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज,परम पूज्य आचार्य विहर्ष सागर जी महाराज परम पूज्य आदित्य सागर जी महाराज ससंघ, परम पूज्य आर्जव सागर जी महाराज गणनी गुरु मां विज्ञा श्री माता जी ससंघ, आचार्य कुंथु सागर जी महाराज, आचार्य शशांक सागर जी महाराज इत्यादि संतो का मंगल आशीर्वाद इस असहनीय वेदना के समय मिल चुका है। पार्श्वमणि की दो बेटियां कुमारी खुशबू जैन कुमारी गरिमा जैन भी अपने दादा विमल चंद जैन की खूब सेवा कर रही है। विदित हो कि त्रिकाल चौबीसी जैन मंदिर आर के पुरम में भी कई सालो तक सेवा की है। जीवन में सद संस्कारों के बीजारोपण से ही यह सब कुछ संभव है।
पारस जैन पार्श्वमणि की सोच यह रहती कि हम न सोचे हमे क्या मिला है हम यह सोचे किया क्या है अर्पण फूल समता के बाटे को सभी को सबका जीवन ही बन जाए मधुबन। इस जिंदगी का क्या भरोसा कुछ नही कह सकते है हम प्यार प्रेम अपनत्व वात्सल्य के सिवाय कुछ नहीं लूटा सकते है हम। निश्चित रूप से यह कर सकते हैं कि इतनी वेदना में साधना करना कोई सहज नहीं होता है और यही है जैन धर्म की उत्कृष्ट तप साधना यह परिवार इस बात को भी सार्थक सिद्ध कर रहा है कि
मात-पिता यह मूल उद्गम है।
संस्कारों के यह उद्गम है।
यही तो साक्षात देव रूप हैं।
सभी पुत्र को यह भावना भारी चाहिए कि प्रभु मेरे घर को यह वर दो माता पिता की सेवा हो।
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