अध्यात्म योगी चर्या शिरोमणि आचार्य विशुद्ध सागर जी काव्य रचना 

काव्य रचना

अध्यात्म योगी चर्या शिरोमणि आचार्य विशुद्ध सागर जी काव्य रचना 

चर्या इतनी शुद्ध है, विराग ने विशुद्ध बना दिया।
राजेन्द्र ने दीक्षा लेकर, मुनि नाम सार्थक किया।।1।
बचपन में ही दिखा दिया, दिगम्बरत्व को जीना है।
ब्रह्मचर्य अवस्था में नग्न होकर वीतरागी पथ पर चलना है ।।2।।
समता भाव से उपसर्ग सह रहे, सर्प आते जाते हैं ।
मीठी निश्छल मुस्कान से, तिर्यंचों को अपना बनाते हैं ॥

3॥29 शिक्षित युवाओं को लेकर, श्रमण ध्वजा फहरा रहे ।संयम की इस राह पर, सबको चलना सिखा रहे॥4॥

 

 

 

क्या बीसपंथी क्या तेरहपंथी, गुरुवर जैन होना बतलाते हैं ।
जिन धर्म की प्रभावना में, एकता की बात सिखाते हैं ||5||

 

पट्टाचार्य का पद ग्रहण कर, गुरु आज्ञा को शिरोधार्य किया ।
भाव-विह्वल अश्रु नयनों से, जी भर कर गुरु को याद किया ।।6।।
श्रीमती स्वाती जैन,
हैदराबाद.

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