जैसे कनेक्टिविटी टावर से होती है,वे वैसे ही भक्त और भगवान के बीच भी कनेक्टिविटी होनी चाहिए। स्वस्तिभूषण माताजी
केशवरायपाटन
परम पूजनीय भारत गौरव गणिनी आर्यिका 105 स्वस्तिभूषण माताजी ने अपने उद्बोधन मे धर्म को शुद्ध भावों से करने पर जोर देते हुए कहा की, धर्म भावों की प्रधानता से होता है, अगर धर्म सिर्फ दिखावे के लिए किया गया है तो उसका फल पुण्य रूप से दिखावे की वस्तुओं ही प्राप्त करा सकता है।
अतिशय क्षेत्र पर प्रवासरत पूज्य माताजी ने कहा कि धर्म शुद्ध भावों से निर्मल परिणाम से किया गया तो निश्चित ही आत्म सुख का कारण बन जाता है। भगवान मौन रहते हैं, लेकिन अगर भक्त को भगवान से सच्चा प्रेम है तो भगवान भी भक्त से बात कर लेते है। भाव सच्चा होना चाहिए।
पूज्य माताजी ने आगे कहा कि जब आत्मा कमजोर हो जाती है तो अपने स्वरूप से भटक जाती है तो कर्म बलवान हो जाते हैं। लेकिन आत्मा अपने स्वरूप में रहे, मन के वशीभूत होकर कर्म ना करें तो आत्मा परमात्मा का स्वरूप है, और सबसे बलवान है। प्रभु की भक्ति में आत्मा से अगर एक भजन भी गा लिया तो भी कर्म हट जाता है। बिन आत्मा से कितनी ही पूजा कर ले तो भीकर्म नहीं हटता है। जितना पुरुषार्थ संसार के लिए आवश्यक है उतना ही पुरुषार्थ धर्म के लिए भी आवश्यक है। बिना पुरुषार्थ के घर, ग्रहस्थी, दुकानदारी, रिश्तेदारी नहीं चलती है। इस प्रकार बिना पुरुषार्थ के धर्म भी नहीं चलता है।पूज्य माताजी ने आगे कहा कि जितनी लगन सांसारिक क्रियाओ में है इतनी लगन अगर धर्म में भी हो जाए तो कर्म हटेंगे।
माताजी ने कहा कि मोबाइल से बात करने के लिए जैसे कनेक्टिविटी टावर से होती है, वैसे ही भक्त और भगवान के बीच भी कनेक्टिविटी होनी चाहिए।संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी 9929747312