शाश्वत तीर्थ श्री सम्मेद शिखर जी के श्री पार्श्वनाथ निर्वाण टोक पर हो रही सिंह निष्कृडीत महाव्रत की कठोर साधना -शाह मधोक जैन चितरी पावन अनुभव –

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*शाश्वत तीर्थ श्री सम्मेद शिखर जी के श्री पार्श्वनाथ निर्वाण टोक पर हो रही सिंह निष्कृडीत महाव्रत की कठोर साधना -शाह मधोक जैन  चितरी  पावन अनुभव

                             

*गणाचार्य श्री पुष्पदंत सागर जी गुरूराज के तपस्वी नंदन अंतर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागर जी गुरूराज जो की तपस्वी सम्राट आचार्य श्री सन्मति सागर जी ऋषिराज की साधना को अपने साधक जीवन का आदर्श मानकर व वरिष्ठ संत स्थिवराचार्य श्री संभवसागर जी ऋषिवर के शुभाशीष से जैन दर्शन की कठोर व्रत साधानाओ में से एक उच्च सिंह निष्कृडीत व्रत की साधना कर रहे है।*

 

 

 

यह तपो साधना सम्पूर्ण विश्व को अचंभित करती है जिसमे साधक 1 उपवास -1 आहार, 2 उपवास -1 आहार,3 उपवास – 1 आहार, के क्रम से अनवरत 15 उपवास -1 आहार तक का चढ़ता हुआ क्रम उसके बाद पुनः घटते हुए क्रम से 15 उपवास – 1 आहार,14 उपवास -1 आहार,13 उपवास – 1 आहार से लेकर अनवरत 1 उपवास – आहार तक की अखंड व्रत की साधना अर्थात 557 दिनों में 496 दिन उपवास मय होते है व मात्र 61 ही दिन सामान्य आहार रूपी पारणा होता है।


ज्ञात इतिहास में गुरुणाम गुरु चरित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांति सागर जी,तपस्वी सम्राट आचार्य श्री सन्मति सागर जी,आचार्य श्री कुशाग्र नंदी जी व मुनि श्री आराध्य सागर जी जैसे अमुख संतो ने ही इस कठोर साधना को सम्पूर्ण किया है।

अंतर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागर जी गुरुदेव ने इन 557 दिनों तक अखंड मौन व्रत का भी संकल्प लिया है सबसे प्रमुख तो यह की अंतर्मना स्वामी पर्वत पर घने जंगलों के मध्य 3400 फिट की ऊंचाई पर स्थित शाश्वत तीर्थ सम्मेद शिखर जी के श्री पार्श्वनाथ भगवान के निर्वाण टोक की गुफा में अकेले प्रवास करते हुए आत्म ध्यान पूर्वक इस महान व्रत को साध रहे है।

 

उपवासो के क्रम के पश्चात जब अंतर्मना स्वामी का पारणा होता है तब उनके पड़गाहन से लेकर आहार चर्या व आचार्य भक्ति तक *वरिष्ठ मुनि श्री पुण्य सागर जी व अन्य संघ से भी साधू भगवंत* स्नेह – वात्सल्य भाव से सम्मिलित होकर सेवा में समर्पित रहते है।

मधोक जैन चितरी बताते है की साधु भगवांतो के आपसी स्नेह व वैयावृत्ति से परिपूर्ण इस पावन दृश्य को भगवान पार्श्वनाथ स्वामी की निर्वाण टोक पर जो भी श्रद्धालु अपनी चक्षु से निहारता है वो अपने जीवन का सबसे सौभाग्य शाली क्षण समझता है।

पारणे के दिन *मुनि श्री पुण्यसागर जी गुरुदेव* स्वयं पर्वतराज पर आकर जब अन्तर्मना स्वामी का हाथ पकड़ कर पड़गाहन से लेकर आहार चर्या संपन्न करवाते है *इसीलिए संतवाद – गुरु परंपरावाद से परे हटकर साधर्मी साधकों का ये आपसी विनय व सेवा भाव का बेमिसाल नजारा स्वर्ग के इन्द्रो को भी प्रफुल्लित होकर नत मस्तक कर देता है।*

 मधोक जैन चितरी कहते है की मै स्वयं को सौभाग्यशाली समझता हू की दिनांक 19 सितंबर 2022 को मुझे इस अवसर को अपनी नयनों से निखारने का स्वर्णिम लाभ मिला।
प्रायः प्रातः 5 बजे टोक की परिक्रमा के वक्त या पारणे के दिन पारणे के वक्त ही अंतर्मना स्वामी के दर्शन मिल सकते है।

*🖊️शब्द सुमन -शाह मधोक जैन चितरी🖊️*
*नमनककर्ता -श्री राष्ट्रीय जैन मित्र मंच भारत*
संकलित अभिषेक जैन लुहाडिया रामगंजमडी

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